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Showing posts from June 29, 2009

‘नीले जहर’ के शिकंजे में किशोर

कोटा. घर-घर में इंटरनेट पहुंचने से मंदे पड़े साइबर कैफे के बिजनेस को अब कैफे संचालक कम उम्र व नादान किशोरों को पोर्र्नो साइट के जरिए अश्लील फिल्में परोसकर मोटी कमाई कर रहे हैं। उन्हें इससे कोई सरोकार नहीं कि इस ‘नीले जहर’ से मासूमों के मन-मस्तिष्क पर क्या बुरे प्रभाव पड़ेंगे। हाल ही में विज्ञाननगर इलाके में छात्रों को पोर्न साइट दिखाते एक साइबर कैफे संचालक को पकड़ा गया था। शहर में यह पहला मामला नहीं है। शहर में करीब तीन सौ साइबर कैफे हैं, जिनमें कई साइबर कैफे केवल पोर्न साइट दिखाने के धंधे में मशगूल हैं। जहां इंटरनेट के उपयोग के लिए साइबर कैफे में दस रुपए प्रतिघंटा शुल्क वसूला जाता है, वहीं पोर्न साइट दिखाने के लिए कैफे संचालकों द्वारा मुंहमांगी कीमत वसूल की जा रही है। जो पचास रुपए से लेकर सौ रुपए तक प्रति व्यक्ति होती है। इन कैफे के ज्यादातर ग्राहक कोचिंग विद्यार्थी हैं, जो अपने घर से तो डॉक्टर, इंजीनियर बनने का सपना लेकर आए, लेकिन कैफे संचालकों ने उन्हें इस ‘नीले जहर’ का चस्का ऐसा लगाया कि रात-रातभर पोर्न साइट देखते रहते हैं। नए कोटा क्षेत्र के जवाहरनगर, तलवंडी, विज्ञाननगर

कोई हिंदी पर भी ध्यान दो

दीपिका कुलश्रेष्ठ Journalist, bhaskar.com हाल ही में अंग्रेजी भाषा में शब्दों का भंडार 10 लाख की गिनती को पार कर गया पर हमारी मातृभाषा हिंदी का क्या, जिसमें अभी तक मात्र 1 लाख 20 हज़ार शब्द ही हैं। कुछ लोगों का मानना है कि अंग्रेजी भाषा का 10 लाख वां शब्द 'वेब 2.0' एक पब्लिसिटी का हथकंडा है और कुछ नहीं। जो भी हो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि वर्तमान में अंग्रेजी भाषा में सर्वाधिक शब्द हैं। विभिन्न भाषाओं में शब्द-संख्या अंग्रेजी- 10,00,000 चीनी- 500,000+ जापानी- 232,000 स्पेनिश- 225,000+ रूसी- 195,000 जर्मन- 185,000 हिंदी- 120,000 फ्रेंच- 100,000 (स्रोत- ग्लोबल लैंग्वेज मॉनिटर 2009) अंग्रेजी में उन सभी भाषाओं के शब्द शामिल कर लिए जाते हैं जो उनकी आम बोलचाल में आ जाते हैं। लेकिन हिंदी में ऐसा नहीं किया जाता। जब जय हो अंग्रेजी में शामिल हो सकता है, तो फिर हिंदी में या, यप, हैप्पी, बर्थडे आदि जैसे शब्द क्यों नहीं शामिल किए जा सकते? वेबसाइट, लागइन, ईमेल, आईडी, ब्लाग, चैट जैसे न जाने कितने शब्द हैं जो हम हिंदीभाषी अपनी जुबान में शामिल किए हुए हैं लेक

क्षण से पल ओ पल से घड़ी, घड़ी से दिन बन जाता है

समय क्षण से पल ओ पल से घड़ी, घड़ी से दिन बन जाता है। इसका बढ़ते रहना काम समय कब वापस आता है।। पंचतत्व निर्मित है देह ,देह मे बसे हुए हैं प्राण, प्राण में द्युतिमान हो प्रेम ,पे्रम में दिल रम जाता है। नित प्रेम ही जीवन सार ,सार को खोज न पाये मान, मान को त्याग हुआ जो आर्य, आर्य वो श्रेष्ठ कहाता है। आर्य छॉड़ि देत निज कर्म , कर्म का बन जाता है काम, काम में जो रमता सन्त सन्त वो असन्त कहाता है। साम में ही सम्भव है दाम , दाम से बच जाता है दण्ड, दण्ड से बचे जाने भेद ,भेद वो श्रेश्ठ कहाता है। भेद को जाना हुआ वो एक , एक में ओंकार का वास, वास वह ही पाने की चाह राष्ट्रप्रेमी ध्याता है।