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Showing posts from November 10, 2008

बिहारी अस्मिता का लालू'राग'

बिहारी अस्मिता का लालू'राग' बिहार के नेता इन दिनों बड़े चिंतित हो रहे हैं. उनकी चिंता है कि महाराष्ट्र में गुण्डाराज स्थापित हो गया है. इस गुंडाराज के खिलाफ केन्द्र और राज्य की कांग्रेस सरकार कड़े कदम उठाने में विफल रही है. इसके विरोध में बिहार के अराजक युग के शिल्पकार लालू प्रसाद यादव ने सभी जनप्रतिनिधियों से अपना इस्तीफा देने का आह्वन किया है. लालू की ओर कोरी बिहारी अस्मिता की कवायद में वे भारी न पड़ जाएं इसलिए जद यू के पांच सांसदों ने अपने इस्तीफे लोकसभा महासचिव को सौंप भी दिये हैं. जिसमें प्रभुनाथ िसंह और जार्ज फर्नांडीज भी शामिल हैं.राजनीति में इस तरह ढकोसले होते ही रहते हैं. सवाल तो यह है कि क्या बिहार के सांसदों में सचमुच इतना नैतिक बल है कि वे महाराष्ट्र की कानून व्यवस्था पर सवाल पूछ सकें? यदि कानून और न्याय व्यवस्था के मापदण्ड पर कोई निष्पक्ष निर्णय लिया जाए तो बिहार में राष्ट्रपति शासन या मार्शल ला के अलावा कोई तीसरा विकल्प शेष ही नहीं रह जाता. महाराष्ट्र में अगर गुण्डाराज का प्रभाव छटांकभर है तो बिहार में पसेरी और मन के बटखरे के बिना तौल संभव ही नहीं है. पहले यह देख

राष्ट्रवाद बनाम महाराष्ट्रवाद

समाजवादी चिंतक विचारक और राजनीतिज्ञ मधु लिमये राष्ट्रवाद बनाम महाराष्ट्रवाद मराठी मर्द" राज ठाकरे के विषवमन से इन दिनों राष्ट्रीयता और राष्ट्रवाद को लेकर नये तरह की बहस छेड़ दी है। यह बहस ऐसे समय में छिड़ी है जब राष्ट्रवाद भी संकुचित अर्थ ग्रहण कर चुका है। राष्ट्रवाद का जिक्र आते ही लोगों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी की याद आने लगती है। राज ठाकरे की मौजूदा राजनीति के बाद मराठी राष्ट्रवाद का एक नए सिरे से उभार हुआ है। मधु लिमये ने अपनी मौत के ठीक पहले लिखे एक लेख में कांग्रेस को राष्ट्रीय एकता के लिए जरूरी बताया था। मधु लिमये भी मराठी ही थे। उनका राष्ट्रीयताबोध आज के मराठी वीर पुरूष राज ठाकरे से अलग था। ये विचार इसलिए भी अहम हैं कि इसे प्रतिपादित करनेवाले मधु लिमये वह शख्स थे, जिन्होंने ताजिंदगी कांग्रेस और उसकी राजनीति का विरोध किया था। साठ से लेकर सत्तर के दशक की संसद की कार्यवाही गवाह है कि मधु लिमये, पीलू मोदी, लाडली मोहन निगम और मनीराम बागड़ी की छोटी टीम ने इंदिरा गांधी जैसी करिश्माई ताकत को भी हिचकोले खाने के लिए मजबूर कर दिया था। ऐसे मधु लिमये जब कांग्र

संवाद का एक बड़ा आंदोलन चलाओ, आतंकवाद खत्म हो जाएगा

संवाद का एक बड़ा आंदोलन चलाओ, आतंकवाद खत्म हो जाएगा हिंसा की आंधी हर स्तर पर चारों ओर उठ रही है जो मनुष्य के अंदर जितनी तरह की कमजोरियां हैं, उसको उभारने में लगी हैं. सिर्फ किसी को मारने-पीटने भर का सवाल नहीं है, इस हिंसा का दायरा बहुत बड़ा है. एक तरह से पूरे समाज का पाशवीकरण करने की कोशिश हो रही है ताकि समाज में कोई मूल्य ऐसा बचे नहीं जिसपर पांव टिकाकर समाज खड़ा हो सके. इस तरह की एक फिसलन वाली जमीन तैयार करने की कोशिश की जा रही है कि आदमी कहीं अपना पांव टिका ही न सके. मैं आपसे कह सकता हूं कि इस कोशिश के पीछे बहुत सोची समझी रणनीति है. क्योंकि जिस तरह की सांप्रदायिकता फैलायी जा रही है और पूंजी को आराध्य के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है उसको मानने के लिए एक पाशविक समाज का होना जरूरी है. उसके बगैर आप ये कर नहीं पाओगे. इसलिए मनुष्य के अंदर हर स्तर पर जो कमजोरियां है उसको उभरने का मौका कैसे मिले इसकी कोशिश की जा रही है. खादी का प्रचार करना है इसलिए रैंप पर फैशन शो होना चाहिए. हो रहा है. लोग देखने जाते हैं. खादी के ड्रेस डिजाईनर्स हैं जिनके एक-एक कपड़े दो-दो, चार-चार हजार के बनते हैं. अब