इस्लामिक नेताओं द्वारा वन्दे मातरम् के विरोध के विरोध में अनेकों स्तर पर क्षोभ व रोष का प्रदर्शन हुआ है। दारुल उलूम देवबन्द द्वारा वन्देमातरम् गायन हेतु मुसलमानों को अनुमति दे दिये जाने के समाचार से देश वासियों ने राहत की सांस ली ही थी कि अगले ही दिन दारुल उलूम के वन्दे मातरम् विरोधी बयान फिर आ जाने से यह स्पष्ट हो गया कि कट्टरपंथी ताकतें सिर्फ पाकिस्तान सरकार पर ही हावी नहीं हैं , बल्कि दारुल उलूम देवबन्द भी इनका शिकार है। इतिहास गवाह है कि इस्लामिक भावनाओं का सम्मान करते हुए वन्दे मातरम् को राष्ट्रगीत के रूप में स्वीकार करते समय उसमें केवल वे ही दो पद आधिकारिक रूप से स्वीकार किये गये थे जिनमें किसी भी प्रकार से मुस्लिम विरोध की भावना की कोई गुंजाइश नहीं थी। पर अगर विरोध करने के लिये विरोध करना ही लक्ष्य हो तो एक कारण न रहे तो न सही , दूसरा कारण ढूंढ लिया जायेगा। यही वन्दे मातरम् के साथ हो रहा है। वन्दे मातरम् का विरोध करने वाले कतिपय मुस्लिम मजहबी नेता व राजनीतिज्ञ सिर्फ अखबारों व टी.वी. चैनल पर अपने नाम और चेहरे देखने के लालच में ऐसे अतिवादी बयान और फतवे दिया करते है