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Showing posts from February 17, 2010

लो क सं घ र्ष !: साम्राज्यवाद के लिए आसान शिकार नहीं है ईरान-1

1. ईरान क्यों? -क्योंकि ईरान परमाणु बम बना रहा है; -क्योंकि ईरान में इस्लामिक कट्टरपंथ मौजूद है; -क्योंकि ईरान इजरायल पर हमला कर सकता है; -क्योंकि खुद जाॅर्ज बुष उसे शैतान की धुरी का हिस्सा घोषित कर चुके हैं, वगैरह.... कुछ इसी तरह के जवाबों से अमेरिकी और अमेरिकापरस्त लोग सच्चाई पर नकाब चढ़ाने की कोषिष करते हैं। अमेरिका की ईरान पर होने वाली इस खास नज़रे-इनायत को समझने के लिए पष्चिम एषिया की भौगोलिक, आर्थिक स्थितियों और उससे जुड़ी राजनीति को समझना और वहाँ के हालिया घटनाक्रम पर एक नजर डालनी जरूरी है। दुनिया से शैतानियत का खात्मा करने का संकल्प लेने वाले तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जाॅर्ज बुष ने शैतानियत की धुरी (एक्सिस आॅफ इविल) के तौर पर जिन देषों की पहचान की थी, उनमें से इराक को उसकी सारी बेगुनाही के सबूतों के बावजूद लाषों से पाट दिया गया। दूसरा है उत्तरी कोरिया, जिसने अमेरिकी मंषाओं को समझकर अपने आपको एक परमाणु ताकत बना लिया है। आकार और ताकत के मानकों से देखा जाए तो अमेरिका और उत्तरी कोरिया की तुलना शेर और बिल्ली के रूपक से की जा सकती है। लेकिन अब शेर को बिल्ली पर हाथ डालने से पहल

हंसी केतकी देख कर॥

हंसी केतकी देख कर॥ हंसमुख हुआ सरीर॥ न तो रीति थी॥ न बना समय विपरीत॥ भ्रमर अधिक आतुर था प्यासा॥ सूझ गयी क्या प्रीति॥ कलया कैसे ढँक गयी॥ रचना रची रंगीन॥ विनय किया हे पवन तुम॥ बह लो मेरे अधीन॥ आज पवन रस बरषे गा॥ आतुल ब्याकुल हीन भ्रमर भीर॥ आय कली में गरजे गा॥

गम देके चले गए॥

आये थे हमसे मिलने॥ गम देके चले गए॥ खुशिया लगी है हंसने॥ वे मिल के चले गए॥ जाते जाते बता गए॥ फिर ये पल नसीब हो॥ तुम मेरे करीब हो ॥ हम तेरे करीब हो॥ पचपन के ढके छोले का॥ आँचल उड़ा गए॥ आये थे हमसे मिलने॥ गम देके चले गए॥ खुशिया लगी है हंसने॥ वे मिल के चले गए॥ जाते जाते बता गए थे॥ सौभाग्य है हमारा॥ पूनम को पूणिमा को॥ हंसता दिखा नजारा॥ मेरे ही नीर में वे ॥ अमृत मिला गए॥ आये थे हमसे मिलने॥ गम देके चले गए॥ खुशिया लगी है हंसने॥ वे मिल के चले गए॥ जाते जाते बता गए॥ संगम में कैसे मिलना॥ खिलते हुए चमन में॥ फूलो के साथ मिलना॥ मेरी ही घुन में अपनी॥ सरगम मिला गए॥ आये थे हमसे मिलने॥ गम देके चले गए॥ खुशिया लगी है हंसने॥ वे मिल के चले गए॥

तेलुगू उपन्यास पर भारी हंगामा

अनिरुद्ध शर्मा नई दिल्ली. साहित्य अकादमी पुरस्कार समारोह में तेलुगू लेखक वाई लक्ष्मीप्रसाद की रचना ‘द्रोपदी’ को लेकर हिंदू मंच नामक संगठन ने जमकर हंगामा किया। इनका आरोप था कि इस उपन्यास में द्रोपदी के चरित्र को गलत व अपमानित तरीके से पेश किया गया है। पुरस्कार वितरण के क्रम में जैसे ही तेलुगू लेखक वाई लक्ष्मी प्रसाद का नाम लिया गया, संगठन के लोग अपनी सीटों पर खड़े होकर नारेबाजी करने लगे और द्रोपदी उपन्यास के विरोध की तख्तियां हवा में लहराने लगे। इतना ही नहीं, कार्यकर्ता मंच के करीब आ पहुंचे तो सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें मंच पर चढ़ने से रोका। कुछ ही देर में समारोह में व्यवधान डालने वालों को पुलिस की मदद से सभागार से बाहर कर दिया गया, लेकिन वे सभागार के बाहर भी खड़े होकर नारे लगाते रहे और विरोध प्रदर्शन जारी रखा। उधर, हंगामा शांत होने के बाद समारोह शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हुआ। कार्यक्रम के बाद लेखक लक्ष्मी प्रसाद ने कहा कि चार लोगों के हंगामा करने से वे डरने वाले नहीं हैं। वे अब तक 32 किताबें लिख चुके हैं। द्रोपदी उपन्यास के जरिए उनका उद्देश्य ही द्रोपदी को महान रूप देन