ढहते किलों के बीच इलेक्ट्रानिक मीडिया को नया मंत्र मिल गया है. वह मंत्र है- आतंकवाद. आतंकवाद से इस लड़ाई में मीडिया सीधे जनता के साथ मिलकर मोर्चेबंदी कर रहा है. यह मोर्चेबंदी अनायास नहीं है और ऐसा भी नहीं है कि अचानक ही इलेक्ट्रानिक मीिडया नैतिक रूप से बहुत जिम्मेदार हो गया है. कारण दूसरे हैं जो कि उसकी व्यावसायिक मजबूरियो से जोड़ते हैं. वैश्विक मंदी के इस दौर में आतंकवाद ही एक ऐसा मंत्र है जो ज्यादा देर तक दर्शकों को बुद्धूबक्से से जोड़कर रख सकता है. इलेक्ट्रानिक मीडिया इस मौके को किसी कीमत पर नहीं चूकना चाहता. अगर आप पिछले साल भर का डाटा उठाकर देख लें तो इलेक्ट्रानिक मीडिया ने हमेशा छोटी-छोटी बातों का बतंगड़ बनाया है. अभी हाल में मुंबई में राज ठाकरे का आतंक टीवी पर खूब बिका. राज ठाकरे के गुण्डों ने जो कुछ किया वह शर्मनाक था लेकिन इतना भी नहीं था जितना इलेक्ट्रानिक मीडिया ने हौवा बनाया. टीवी पर आयी खबरों को देखकर हमने अपने एक मित्र को फोन किया कि आपको इस बारे में कुछ लिखना चाहिए. उन्होंने छूटते ही जवाब दिया ऐसा कुछ है ही नहीं जैसा टीवी में दिखाया जा रहा है तो इसमें लिखने जैसा क्या है.