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Showing posts from March 8, 2009

~*~स्विस बैंक के खातों का रहस्योद्घाटन~*~

स्विस बैंक के खातों का रहस्योद्घाटन {( जब की मौका हे हमारे पास इन सवालो का जवाब माँगने का इलेक्शन आ रहे हे और यही बे गैरत लोग हमारे बीच मे वोट की भीक माँगने आले वाले हे तब हम उनसे इतना तो पुच्छ सकते हे की आपकी कितनी पूंजी जमा पड़ी हे स्विस बेंक अकाउंट्स मे जो हमारे खून से कमाई हुई हे और इसे देश के विकास मे ना खर्च करते हुए खुद के विकास के लिए रखी हे ?कितनो के खून से ये हाथ रंगे हे जो जो हाथ सिर्फ़ और सिर्फ़ लोगो की गर्दन ही नापते हे?कई सवाल हे जिनके जवाब हम अपनी जागरूकता से माँग सकते हे......सोना तो हमेशा के लिए हे ही बस इस बार जागो.....जो और जितना कर सकते हे करो...सयद देश की खुशहाली के लिए हमारा ये कदम कोई नया मोड़ लाए......)} यह कितना चौकाने वाला है.....अगर काला धन जमा करने की प्रतियोगिता का ओलंपिक मे आयोजन किया जाय तो .... भारत को एक स्वर्ण पदक मिल सकता है. दूसरा सर्वश्रेष्ठ रूस ने भारत से 4 बार कम धन रासी जमा की है. अमेरिका वहाँ शीर्ष पाँच में भी गिनती में नही है! भारत के स्विस बैंकों में सभी अन्य देशों की संयुक्त धन रासी से ज्यादा पैसा है!  हाल ही में, अंतरराष्ट्रीय दबाव के कार

हिंदी पद्य साहित्य में नारी : ८ मार्च अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते, सर्वास्तत्राफला: क्रिया। नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पग तल में, पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में उपरोक्त हिन्दी एवं संस्कृत की अति प्रसिद्ध काव्योक्तियां न केवल नारी की पवित्रता एवं सम्मान को दर्शाती हैं, अपितु यह संकेत भी करती हैं कि जीवन के सुंदर समतल में अमृतसम बहने वाली नारी एक विश्वास के बंधन के साथ साथ कितनी कर्तव्यपरायण भी हैं। पुरातन साहित्य की इन पंक्तियों अनुवादित करते हुए मुख्य विषय यह है कि आज रचा जाने वाला पद्य साहित्य जिस पर निराला की साहित्यिक निष्ठा से लेकर उदारीकरण, निजीकरण एवं भूमण्डलीकरण तक का प्रभाव है, ने नारी की सहनशीलता, कर्तव्यपरायणता, उच्छृंखलता एवं कर्मक्षेत्र में योद्धा की भांति लड़ने वाली प्रवृत्ति को किस रूप में दिखाया है। आधुनिक हिन्दी पद्य साहित्य में नारी के लिए पर्याप्त स्थान है। परंतु जैसे-जैसे समाज में नारी ने अपना रूप बदला है। वैसे-वैसे साहित्यकारों ने उसका पीछा किया है। और साहित्य ने कम से कम इस विषय में तो, अर्थात् नारी को प्रस्तुत करते हुए समाज के दर्पण

अबकी फागुन

अबकी फागुन खेरे होरी ओ गोरी पहना दे मोहें बैयन का हार नहीं करिबे तोहसे सवाल बात मान मोरी अबकी फागुन खेरे होरी ओ गोरी अबकी फागुन भीगें संग संग ई है हमरी पहरी होरी भिगिये अंचला चोली तोहरी अबकी फागुन खेरे होरी ओ गोरी नाचे संग संग अंगना माँ उद्हैबे रंग तोहपे करिबे सीनाजोरी गुलाल अबीर के संग माँ नैनों के तोहरी दर्पण माँ करिबे ठिठोली अबकी फागुन खेरे होरी ओ गोरी रस्तेय२मन्ज़िल.ब्लागस्पाट.com