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Showing posts from January 20, 2010

बासंती दोहा ग़ज़ल -संजीव 'सलिल'

बासंती दोहा ग़ज़ल संजीव 'सलिल' स्वागत में ऋतुराज के, पुष्पित हैं कचनार. किंशुक कुसुम विहंस रहे या दहके अंगार.. पर्ण-पर्ण पर छा गया, मादक रूप निखार. पवन खो रहा होश है, लख वनश्री श्रृंगार.. महुआ महका देखकर, बहका-चहका प्यार. मधुशाला में बिन पिए' सर पर नशा सवार.. नहीं निशाना चूकती, पञ्च शरों की मार. पनघट-पनघट हो रहा, इंगित का व्यापार.. नैन मिले लड़ झुक उठे, करने को इंकार. देख नैन में बिम्ब निज, कर बैठे इकरार.. मैं तुम यह वह ही नहीं, बौराया संसार. ऋतु बसंत में मन करे, मिल में गले, खुमार.. ढोलक टिमकी मंजीरा, करें ठुमक इसरार. तकरारों को भूलकर, नाचो गाओ यार.. घर आँगन तन धो लिया, सचमुच रूप निखार. अपने मन का मेल भी, हँसकर 'सलिल' बुहार.. बासंती दोहा ग़ज़ल, मन्मथ की मनुहार. सूरत-सीरत रख 'सलिल', निएमल-विमल सँवार.. ************************************ दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

लो क सं घ र्ष !: धोबी, पासी, चमार, तेली खोलेंगे अँधेरे का ताला

महाप्राण निराला के जन्मदिन के अवसर पर लोकसंघर्ष परिवार का शत् - शत् नमन image source : google search जल्द - जल्द पैर बढाओ , आओ - आओ । आज अमीरों की हवेली , किसानो की होगी पाठशाला । धोबी , पासी , चमार , तेली खोलेंगे अँधेरे का ताला । एक पाठ पढेंगे , टाट बिछाओ । सूर्य कान्त त्रिपाठी ' निराला '