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Showing posts from March 13, 2011
यह नफरत यह झगड़े यह फसादात आखिर कब तक चलेगे यह नफरत यह झगड़े यह फसादात आखिर कब तक चलेगे इसका जवाब ना आपके पास हे ना मेरे पास , इसके पीछे क्या कारण हे और झगड़े फसादात नफरत क्यूँ फेल रही हे ना आप जानते हें ना में जानता हूँ लेकिन सक यही हे चाहे आप हो चाहे में हूँ कमोबेश कहीं ना कहीं इन सब के लियें ज़िम्मेदार हें और इस पर हमें आपको चिन्तन करना होगा गलती स्वीकार करना होगी नहीं तो बस यह सिलसिला यहं ही चलता रहेगा और मेरे भारत महान को महान बनाने का सपना यूँ ही चकनाचूर होता रहेगा .  दोस्तों एक सप्ताह पूर्ण एक घटना मेरे सामने एक ऐसा सच बन कर सामने आया जिसकी चिंगारी से देश जल रहा हे ऐसा मेरा अनुमान हे चाहे आप हो चाहे में हूँ सभी इस चिंगारी के शिकार हें और इस चिंगारी से बनी आग में हाथ तापने के सपने लगाये बेठे हें भाइयों में एक सप्ताह से असमंजस में था के इस सच का आपके सामने खोलूं या नहीं क्योंकि सच तो सच होता हे और सच जब भी बोला जाता हे लिखा जाता हे एक बढ़ा तबका उसके खिलाफ हो जाता हे लोग बुरा मान जाते हें नाराज़ हो जाते हें और में जानता हूँ मेरे इस सच बोलने को  को कई लोग साहसिक कदम
ब्लॉग सजावट की प्रतिभा हे शाहनवाज़ जो अहम छोड़ कर  मधुरता के सुवचन बोलता हे वाही विश्व विजेता होता हे और यही विचारधारा लिए भाई शाहनवाज़ सिद्दीकी अपना जीवन जी रहे हे इसी अपने पण की विचारधारा लियें वोह इस ब्लोगिंग की दुनिया मने आये और आज सभी के खास बन गये . शाहनवाज़ सिद्दीकी देहली में पाले बढ़े हरिद्वार की हवा खाई और फिर दिल्ली में पत्रकारिता की दुनिया में तहलका मचाने के बाद सजावट की कला ने इन्हें आज विज्ञापन की दुनिया में बहतरीन सजावटी विज्ञापन तय्यार कर जनता के सामने परोसने वाला प्रमुख कलाकार बना दिया , शाहनवाज़ सिद्दीकी के मन में पत्रकार जिंदा हे वोह एक कलाकार के साथ साथ जिंदगी और जिंदगी की घटनाओं को अपने हिसाब से देखते हे सोचते हें समझते हें और इन अनुभवों को कलम के माद्यम से अपनों के साथ बांटना चाहते हें और इसीलियें  वर्ष २०१० में वोह ब्लोगिंग की दुनिया में आये उन्होंने अपने नाना से यह प्रेरणा ली और वोह आज दिल्ली की विज्ञापन दनिया में डिजायनर के रूप में अपने झंडे गाड़े हुए हें शाहनवाज़ के अप तक ६९ प्रशंसक बन गये हें और इनकी कला और लगन के कारण ही शाहनवाज़ आज हमारिवान

नव वसन्त तब ही महकेगा.

नव वसन्त                              बच्चे हैं  भारत  का गौरव कितना भरा है इनमें शौरभ मन्द-मन्द ये करते कलरव कल को  बन जायेंगे पौरव. ये हैं भारत भाग्य विधाता भेदभाव इनको ना आता इतने बच्चे एक अहाता एक गान हर बच्चा गाता. पढ़े  न कोई  भारत दर्शन बच्चों के ही कर ले दर्शन इनमें छुपे सुभाष और वर्मन इनमें  ही  हैं गान्धी सरवन. जहां-जहां है इनका पहरा स्नेह मिलेगा वहीं पै गहरा चांद भी देखन को है ठहरा चरण-स्पर्श को सागर लहरा.  कैसे  हम  नव-वसन्त मनाएं जब बच्चे भूखे सो जाएं कागज  बीने रोटी खाएं फुटपाथों पर रात बिताएं. आओ इनको गले लगाकर  इनके कष्टों को अपनाकर सबको ही शिक्षा दिलवाकर इन्हें बनायें हम रत्नाकर. घर-घर स्वत: रंग बिखरेगा भारत  सोता हुआ जगेगा अन्धकार  भी दूर  भगेगा नव वसन्त तब ही महकेगा.