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Showing posts from May 4, 2010

लो क सं घ र्ष !: खोने के लिए बेड़ियां और जीतने के लिए सारा जहान

1 मई हमारे लिए उन मजदूर साथियों और उनकी शहादत को याद करने का दिन है जो समूचे मजदूर-मेहनतकश तबके के हितों और हकों के लिए लडे, ज़ो साम्राज्यवाद-पूंजीवाद के रास्ते में चट्टान बनकर खडे हुए और समाजवाद के सपने को करोड़ों दिलों में बसा गए। 1 मई उस संकल्प को याद करने का भी दिन है कि ये समाज व्यवस्था, जो लालच, स्वार्थ, मुनाफे, भेदभाव और गैर-बराबरी पर टिकी है, ये हमें मंजूर नहीं। इसे हम बदल डालेंगे और एक ऐसा समाज बनाएंगे जहां इंसान का और श्रम का सम्मान हो, न कि पूंजी और मुनाफे का। पिछले वक्त में जो महंगाई बढ़ी और जरूरी चीजों के दाम आसमान छूने लगे तो क्या कारखानों, खेतों में काम करने वाले मजदूरों ने मेहनत करनी कम कर दी थी? या कोई भयानक अकाल, बाढ या कौन सी तबाही सारी दुनिया में आ गई थी जिसकी वजह से सब कुछ तहस-नहस हो गया था? लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था। सारी दुनिया के मजदूर पहले की ही तरह, बल्कि पहले से भी ज्यादा मेहनत कर रहे हैं, लेकिन फिर भी एक तरफ उनका गला बढ़ती हुई महंगाई दबोचती है तो दूसरी तरफ से नौकरी छिन जाने की तलवार सिर पर लटकती रहती है। सब कहते हैं कि इन

लो क सं घ र्ष !: ब्लॉग उत्सव 2010

सम्मानीय चिट्ठाकार बन्धुओं, सादर प्रणाम, आज ब्लोगोत्सव के नौवें दिन अर्थात दिनांक 03.05.2010 के संपन्न कार्यक्रम का लिंक- आज किसी भी संस्कृति की शुचिता की बात करना बेमानी ऒर ग़ॆरजरूरी हॆ ...! http://www.parikalpnaa.com/ 2010/05/blog-post.html साहित्य ऒर संस्कृति को हाशिए की ओर धकेलने की कोशिश की जा रही : दिविक रमेश http://utsav.parikalpnaa.com/ 2010/05/blog-post.html साहित्य को पुरस्कृत करना मानवीय संवेदनाओं और अनुभूतियों की पहचान को दर्शाता है। http://www.parikalpnaa.com/ 2010/05/blog-post_02.html श्री राम शिव मूर्ति यादव का आलेख : साहित्य में पुरस्कारों की राजनीति http://utsav.parikalpnaa.com/ 2010/05/blog-post_03.html अपने रामपाल भइया भी , हाथी पर चढ़े मिलेंगे .......!" http://www.parikalpnaa.com/ 2010/05/blog-post_03.html विनोद कुमार पांडेय की कविता : राजनीति और फिल्मी सितारे http://utsav.parikalpnaa.com/ 2010/05/blog-post_7777.html दिये की लौ सा प्रकाशित