1 मई हमारे लिए उन मजदूर साथियों और उनकी शहादत को याद करने का दिन है जो समूचे मजदूर-मेहनतकश तबके के हितों और हकों के लिए लडे, ज़ो साम्राज्यवाद-पूंजीवाद के रास्ते में चट्टान बनकर खडे हुए और समाजवाद के सपने को करोड़ों दिलों में बसा गए। 1 मई उस संकल्प को याद करने का भी दिन है कि ये समाज व्यवस्था, जो लालच, स्वार्थ, मुनाफे, भेदभाव और गैर-बराबरी पर टिकी है, ये हमें मंजूर नहीं। इसे हम बदल डालेंगे और एक ऐसा समाज बनाएंगे जहां इंसान का और श्रम का सम्मान हो, न कि पूंजी और मुनाफे का। पिछले वक्त में जो महंगाई बढ़ी और जरूरी चीजों के दाम आसमान छूने लगे तो क्या कारखानों, खेतों में काम करने वाले मजदूरों ने मेहनत करनी कम कर दी थी? या कोई भयानक अकाल, बाढ या कौन सी तबाही सारी दुनिया में आ गई थी जिसकी वजह से सब कुछ तहस-नहस हो गया था? लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था। सारी दुनिया के मजदूर पहले की ही तरह, बल्कि पहले से भी ज्यादा मेहनत कर रहे हैं, लेकिन फिर भी एक तरफ उनका गला बढ़ती हुई महंगाई दबोचती है तो दूसरी तरफ से नौकरी छिन जाने की तलवार सिर पर लटकती रहती है। सब कहते हैं कि इन