फल, सब्जी, शक्कर हुआ सपना, यही कमर तोड़ महंगाई में, ईद का चाँद हुई दालें, सौ रुपया रोज कमाई में। बच्चे रोटी दाल को तरसें, मटरफ़ली देखि ललचायें॥ बोलो देश..... तीस साल तक लड़े मुकदमा, हत्यारे सब बरी होई गए। टूटी थी अंधे की लाठी, गहनों, खेत मकान बिक गए। शोक मनाये मात-पिता कि, न्यायपालिका के गुण गायें। बोलो देश.......... फर्जी मुठभेड़ों में जिनके, प्रिय जन स्वर्ग सिधार गए। जो भ्रष्ट व्यवस्था, सत्ता के, गुंडों से लड़कर हार गए। जो नीर अपराधीन नवजवान हिंसक आतंकी कहलाएं॥ बोलो देश......... गुजरात, उड़ीसा, महाराष्ट्र में, जो जिन्दा ही दफ़न हो गए, धू-धूकर जलते भवनों में, जिनके प्रिय बेकफ़न सो गए। जो अपना सर्वस्व गवांकर, शिविरों में जिंदगी बिताएं॥ बोलो देश....... गोदें सूनी हुई और जिन मांगों के सिन्दूर धुल गए। भस्म हुए स्वर्णिम सपने, आँखों में बनकर अश्रु घुल गए। रक्षक पुलिस बन गयी भक्षक, दंगाई मिलि आग लगायें ॥ बोलो देश...... गए कमाने मायानगरी, बीवी बच्चे आस लगाए, राजठाकरे के गुंडों से, बचकर फिर न वापस आये। मातम करें आश्रित या कि, संविधान की महिमा गाएं॥ बोलो देश...... संविधान की ऐसी की तैसी, करते