आजादी का दिन
जनवरी से अगस्त 1947 भारतीय स्वतंत्रता के लिए गहन राजनैतिक
गतिविधियों से परिपूर्ण कठिन समय था। यह ए0आई0एस0एफ0 की संयुक्त जन कार्यवाहियांे का समय था। बम्बई के प्रांतीय गृहमंत्री मोरारजी देसाई ने 22 जुलाई को छात्रों की एक बैठक पर रोक लगा दी तो बम्बई के 60000 छात्र हड़ताल पर चले गए। इसके समर्थन में बनारस और कानपुर में भी बडी हड़तालों का आयोजन किया गया।
14-15 अगस्त की रात को लाल किले से ब्रिटिश यूनियन जैक उतर गया और उसकी जगह तिरंगे ने ले ली। आखिरकार भारत की आजादी का दिन आ ही गया। ए0आई0एस0एफ0 ने भी विभिन्न संगठनों और देश के साथ मिलकर आजादी के उत्सव में हिस्सेदारी की। दिल्ली में स्टूडेन्ट्स कांग्रेस के साथ मिलकर ए0आई0एस0एफ0 ने लार्ड डरविन की मूर्ति पर चढ़कर उसके मुँह पर कालिख पोती और ब्रिटिश साम्राज्यवाद का पुत्तला फूँका। यह आजादी का वह उत्सव था जिसके लिए संघर्ष में आर0एस0एस0 जैसे संगठनों ने बाधाएँ खड़ी करने के अलावा कोई योगदान नहीं दिया और अपने कुत्सित प्रयासों को उन्होंनें साम्प्रदायिक सद्भाव खत्म करने के तौर पर जारी रखा।
स्वतंत्रता प्रा