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Showing posts from February 16, 2010

लो क सं घ र्ष !:देश में नफरत की बात करने वालों के लिए सबक

एक बार फिर देश में अमनपसन्द नागरिकों ने फसाद फैलाने वालों को करारी शिकस्त दे दी और घृणा की राजनीति करने वालों को मुहब्बत का पैगाम देने के इरादे से बनाई गई शाहरूख खान की फिल्म ‘‘माई नेम इंज खान’’ के हक में अपार समर्थन देकर जनता ने करारा जवाब दे दिया है। देश में भाषा, क्षेत्रवाद व धर्म के नाम पर अलगाववाद का विष घोलने वाले लोगों के लिए यह अवश्य सबक ही कहा जायेगा। पहले देश के अमन पसन्द नागरिक ऐसी शक्तियों के विरूद्ध खुलकर आने से परहेज करते थे इसी कारण मुट्ठीभर उपद्रवियों की बुज़दिलाना हरकतों को बल मिलता था और बेकुसूरों पर जुल्म होता था। सामाजिक प्रदूषण फैलता था परन्तु अब यह अच्छा संकेत माना जाना चाहिए कि अमन पसन्द लोग आतंक फैलाने वालों व देश को बांटने का काम करने वालों के विरूद्ध मोर्चा संभालने निकल रहे हैं। इसमें मीडिया की भी भूमिका महत्वपूर्ण है। जिस प्रकार मीडिया ने इस बार साथ मिलकर शिवसेना व महाराष्ट्र निर्माण सेना के विरूद्ध मोर्चाबन्दी की है वैसे ही यदि धार्मिक द्वेष फैलाने वालों के विरूद्ध भी मीडिया करती तो शायद बाबरी मस्जिद विध्वंस काण्ड के दोषियों को कोई महत्व ना मिलता और वह हीरो

बचपन, आंखें नम हैं!!

फ़राज़ खान... आज भी याद है, वो बचपन जब परियों की कहानी हकीकत होती थीं। गुज़रते वक्त के साथ परियां कहानी हो गईं, एक खूबसूरत ख्वाब जिसे बचपन कहा था, खुशियां मां की वो मुस्कुराहट थी, डर उसका रूठ जाना था, अब्बा की दी अठन्नी होती थी कमाई, दादा की गोद में बिस्तर मस्ताना था। दादा के दालान की हरी घास में वो धूप का बहना, वो बारिश की पहलॊ बूंदों से मिट्टी की महक उड़ना, आज भी लगता है कि वो कल ही की बात है, अभी तो रात हुई है कल सुबह देखना वही नर्म हाथ तुम्हें उस गर्म कम्बल से उठायेंगे, खुद हल्के से गुनगुने पानी से नहलायेंगे, वो उजड़ा सा बस्ता लेकर मैं स्कूल को जाउंगा, सबक जो याद ना किया उस पे मार खाउंगा। पहले घण्टे में ही डब्बा खत्म, और खाने की घण्टी तक तो सब कुछ हज़म, उस अठन्नी का फ़िर वहीं काम आयेगा, उसका साथी भी मिला तो जमूरा समोसा भी खायेगा। ज़िन्दगी की रफ़्तार ने वो ख्वाब धुंधला कर दिया, उस अठन्नी का क्या कसूर था जो उसे फ़कीर की कटोरी में तन्हा छोड़ दिया, आज भी वो ठिठुरती है उस ठण्डी सर्द कटोरी में। एक वक्त रहती थी गर्म उम्मीद से भरी मासूम मुठ्ठी में। जब दिल की धढ़्कनों से हम रिश्ते पहचानते थ

मुहब्बत कबाब है॥

मुहब्बत कबाब है॥ खाना पसंद करते है॥ यार जब बिछुड़ता है॥ हर पल आंसू गिरते है॥ खो जाती है लालिमा॥ चेहरा मुरझा जाता है॥ महकते उपवन में ॥ अन्धेरा नज़र आता है॥ किसी किसी के मुकद्दर में॥ फिर से कमल खिलते है॥