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Showing posts from February 28, 2010

आईआईटी के छात्र ने की प्रेमिका की हत्‍या

शिमला. टेक्सटाइल इंजीनियर का ककहरा सीख रही बिहार के पटना की प्रगति ने जिस छात्र के संग प्रेम प्रसंग की कहानी बुनी उसने अपने हाथों से ही प्रेमिका का ही खून कर डाला। हिमाचल पुलिस ने जद्दोजहद के बाद मृतका की पहचान की। शिमला पुलिस इस सिलसिले में पटना पुलिस के अलावा मृतका के अभिभावकों से भी लगातार संपर्क में है। उधर, पुलिस ने चाकू से गला रेत कर किए मर्डर के आरोपी गौरव वर्मा की भी पहचान कर ली है। वह रुड़की में आईआईटी का छात्र है। उसकी गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने हिमाचल से लेकर उत्तर-प्रदेश और दिल्ली से लेकर पटना तक खुफिया जाल बिछा दिया है। कई राज्यों की पुलिस से भी शिमला पुलिस ने सहयोग मांगा है। पुलिस का दावा है आरोपी लाख कोशिश करें वह उसके बिछाए नेटवर्क में फंस कर ही रहेगा। पुलिस ने आरोपी की भी यूं ही नहीं पहचान नहीं की। आईआईटी दिल्ली से लेकर आईआईटी रुड़की तक के अधिकारियों से संपर्क कर आरोपी के बारे में मालूमात की। आरोपी का मोबाइल स्विच ऑफ जा रहा है। लेकिन उसके लैंडलाइन पर पुलिस ने उसके बारे में सब कुछ जान लिया। पूरे मामले की तफ्तीश शिमला के एसएसपी आर एम शर्मा की देखरेख में आगे बढ़

लो क सं घ र्ष !: बुरा मनो या भला क्या कर लोगे होली है : खूने जिगर भी बहाओ तो जानूँ

रंगो की होली तो सब खेलते हैं। खून जिगर भी बहाओं तो जानूँ।। प्रेम के रंग में मन भी रंग जाए बन्धू। कोई ऐसी होली मनाओं तो जानूँ।। दो बदन मिलना केाई जरूरी नहीं। दिल से दिल को मिलाओं तो जानूँ।। ठुमरी वो फगुआ तो गाते सभी हैं। प्रेम का गीत कोई सुनाओ तो जानूँ।। मुहब्बत बढ़े और मिट जाए नफरत। कोई रीति ऐसी चला ओ तो जानूँ।। रूला देना हँसते को है रस्में दुनिया। रोते हुए की हँसाओ तो जानूँ।। है आसान गुलशन को वीरान करना। उजड़े चमन को बसाओ तो जानूँ अपना चमन प्यारे अपना चमन है। दिलोजान इस पर लुटाओं तो जानूँ।। मिट जाए जिससे दिलो का अँधेरा। कोई शम्मा ऐसी जलाओं तो जानूँ।। ऐशो इशरत में तो साथ देती है दुनिया। मुसीबत में भी काम आओ तो जानूँ।। मुस्कराना तो आता है सबको खुशी में। अश्कें गम पीके भी मुस्कराओ तो जानूँ।। अपनों वो गैरों की खुशियों के खातिर। ? जमील अपनी हस्ती मिटाओं तो जानूँ -मोहम्मद जमील शास्त्री । सभी चिट्ठाकार बंधुओं को परिवार सहित होली की हार्दिक शुभका

प्यार हमारा

प्यार हमारा जिसका कोई रूप नहीं है जिसकी कोई भाषा ,कोई बोली नहीं है जो समझता है दिल कि ही बातो को एहसास है तो सिर्फ साथ बंध जाने का तमन्ना है तो अब साथ निभाने की हम तो एक पत्थर है उस रस्ते के जिस से महोब्बत के महल बना करते है एह खुदा मेरे मुझे ऐसी अदा से नवाज़ा कि महोब्बत का जनुन जब दिल में बसता है तो इस दिल में एक अजीब सा तुफ्फान सा उठता है इतने से काफी हो जाये ये सबब ..एह खुदा कि इश्क कि तनहा साँसे भी मुझे महका देती है उनकी यादे के साये जब घेर के मंडराते है तो चिराग महोब्बत के ही उनके मेरे इर्द गिर्द मंडराते है प्यार हमारा जिसका कोई रूप नहीं है .......... (..कृति ..अंजु...अनु...)

अजीब सी उलझन में है ये मन

अजीब सी उलझन में है ये मन अजीब सा ये एहसास है उम्र के इस मौड़ पर क्या किसी के आगमन का ये आभास है क्यों अब ये दिल जोर जोर से धड़कता है क्यों हर पल उसकी ही सोचो का दायरा है हर पल ऐसा लगे कि वो मेरे साथ है क्या उसे भी मेरी तरह इस बात का एहसास है कि है कोई जो इस दिल के तारो को अब झनझनाता सा है आ आ कर सपनो में अब वो जगाता सा है क्यों वो धीरे धीरे मेरे लिए ही गुनगुनाता सा है अजीब सी उलझन में है ये मन............. क्यों मै अब नए सपने बुनने लगी हूँ क्यों इस नयी इस दुनिया में विचरने लगी हूँ क्यों खुद से ही मै बाते करने लगी हूँ अरमानो के पंख लगा ... लो उड़ चला अब मेरा मन क्यों प्यार के इस नए एहसास से अब मन डरा डरा सा है मेरे मन और तन कि भाषा अब बदली बदली सी है मेरी आँखों में अब नए सपनो कि दुनिया अब सजी सजी सी है है बदलाव का नया नया दौर ये क्यों मै तरु सी खुद में ही अब सिमटी सिमटी सी हूँ अजीब सी उलझन में है ये मन............. (..कृति..अंजु..(अनु..)

लो क सं घ र्ष !: बजट नीतियाँ लीक से हटने की दरकार

सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री श्री कमल नयन काबरा की शीघ्र प्रकाशित होने वाली पुस्तक ' आम आदमी - बजट और उदारीकरण ' प्रकाशन संस्थान नई दिल्ली से प्रकाशित हो रही है जिसकी कीमत 250 रुपये है उसी पुस्तक के कुछ अंश नेट पर प्रकाशित किये जा रहे हैं । - सुमन भारत सरकार के सालना बजट के प्रावधान और उनके साथ जुड़ी नीतियाँ प्रत्यक्ष प्रभाव से देश की आबादी में अपेक्षाकृत अल्पांश को प्रभावित कर पाती हैं। इनमें से भी सभी का कुल मिलाकर बजट से भला ही हो, सम्भव नहीं हैं। आज की घड़ी न ही यह सम्भव है कि बजट के लाभों और उसकी लागत का न्यायपूर्ण वितरण हो । प्रगतिशील सार्वजनिक व्यय नीति (अर्थात अपेक्षाकृत निर्बल तबकों पर तुलनात्मक रूप से ज्यादा खर्च हो अपेक्षाकृत सबल लोगों के मुकाबले) की कभी चर्चा तक याद नहीं आती है। प्रगतिशील कर प्रणाली, अर्थात अपेक्षाकृत धनी लोगों के अनुपात से ज्यादा कर-राशि उठाई जाये तथा अपेक्षाकृत कम आय और सम्पत्तिवान तबकों से अनुपात कम, काफी चर्चित रही है। किन्तु मेेरी जानकारी के तहत किसी व्यवस्थित और विश्वस्तरीय अध्ययन ने भारतीय कर प्रणाली को प्र