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Showing posts from May 22, 2009

बेवफा

ज़िन्दगी से बहुत दूर हु मै ज़िंदा हु क्योकि मजबूर हु मै मोहब्बत करने की खता हो गई मुझसे वरना तो शायद बेक़सूर हु मै उसकी याद आती है वो क्यों नही आती अपने गम अपने तनहाई में चूर हु मैं हालात के सितम में ये वरना आज भी उसी की आँखों का सुरूर हु मै न की इश्क में कमी कभी लेकिन वोह कहती है अगर तो बेवफा ज़रूर हु मैं

बेवफा

ज़िन्दगी से बहुत दूर हु मै ज़िंदा हु क्योकि मजबूर हु मै मोहब्बत करने की खता हो गई मुझसे वरना तो शायद बेक़सूर हु मै उसकी याद आती है वो क्यों नही आती अपने गम अपने तनहाई में चूर हु मैं हालात के सितम में ये वरना आज भी उसी की आँखों का सुरूर हु मै न की इश्क में कमी कभी लेकिन वोह कहती है अगर तो बेवफा ज़रूर हु मैं

ग़ज़ल

उनकी उल्फत में उतर जाने के बाद किस तरह इकठ्ठा करू ख़ुद को बिखर जाने के बाद जीते जी करता रहू गा फ़र्ज़ उल्फत का अदा कम से कम याद आऊंगा मैं उनको मर जाने के बाद मुझसे मिलने की ज़रूरत भी नही उनको रही बे मुरव्वत हो गए किस्मत संवर जाने के बाद उसको भले न हो मेरी चाहत का एहसास आज याद बहुत आउंगा उसे एक दिन चले जाने के बाद

"हमारा हिन्दुस्तान" का नया रूप....!!!

प्रि ये दोस्तों और पाठको, मैंने आप लोगो से वादा किया था की मैं बहुत जल्द अपने ब्लॉग "हमारा हिन्दुस्तान" का नया रूप आपके सामने पेश करूंगा..... तो ये लीजिये यह है बिल्कुल नया "हमारा हिन्दुस्तान"

अपनी किडनी का ख्याल रखें

विनय बिहारी सिंह शोधकर्ताओं ने पाया है कि हर आदमी को उसके वजन के हिसाब से प्रोटीन लेनी चाहिए। अगर ज्यादा प्रोटीन हो गई तो वह हमारी किडनी के लिए नुकसानदेह है। इसका हिसाब कैसे रखें? उन्होंने बताया है कि प्रति किलोग्राम वजन पर एक ग्राम प्रोटीन जरूरी है। जैसे- अगर आपका वजन ६० किलो है तो आपको ६ ग्राम प्रोटीन की जरूरत है। इससे ज्यादा प्रोटीन नहीं लेना चाहिए। मान लीजिए कि किसी का वजह ५० किलो ही है तो उसे ५ ग्राम प्रोटीन की जरूरत है। यह अंदाजा बहुत सरल है। बस इसी के हिसाब से प्रोटीन पदार्थ लेने चाहिए। शोध में यह भी पाया गया है कि किडनी के नष्ट होने की प्रक्रिया का शुरू में पता ही नहीं चल पाता। जब ५० प्रतिशत किडनी खराब हो चुकी होती है, तब जाकर रोगी को पता चलता है। ऐसे में किडनी को दुबारा स्वस्थ करना संभव नहीं होता। तब डाक्टर ऐसा उपाय करते हैं कि उस किडनी को भविष्य में कोई क्षति न हो। जितना नुकसान होना था वह तो हो चुका। इसके आगे न हो। लेकिन अब इस बात की कोशिश की जा रही है कि शुरू में ही किडनी की बीमार हालत का पता चल जाए और उसका तुरंत इलाज हो सके। इसके लिए कुछ प्रयोग हो चुके हैं। लेकिन एक शोध यह

चुनाव परिणाम - प्रश्न , कारण, ख़ुशी और उम्मीद

एनडीए की हार और यूपीए की जीत ने मन को उदास भी किया है, बहुत कुछ सोचने को मजबूर किया। चुनाव परिणाम काफी ज्यादा आश्‍चर्यजनक रहे। न एनडीए को अपनी इतनी बुरी हार का अंदेशा था और न ही कांग्रेस को इतनी सफ़लता की उम्मीद। फिर ये हुआ क्या, क्या जनता के अंदर कोई चुपचाप लहर चल रही थी जिसे कांग्रेस, बीजेपी और एक मतदाता के रूप में आप और हम महसूस नहीं कर पाए। फिर ऐसा क्या हुआ की परिणाम ऐसा आया। कुछ प्रश्‍न सामने आए हैं- 1. क्या सोचती है जनता - जो सोचते है वो वोट नहीं डालते और जो नहीं सोचते वो वोट डालते है। 2. क्या ये डेमोक्रेसी की जीत है - तब शायद 75 फीसदी वोटिंग होती न की 50 फीसदी से कम। 3 . क्या ये युवा वर्ग की जीत है - लगभग 50 सांसद युवा माने जा रहे है, इनमे से कितने आप-हममें से है, वो युवा वर्ग के प्रतिनिधि माने जाएंगे या पारिवारिक राजनीति के वारिस, मुझको तो कई बार ये लगता है ये प्रक्रिया छोटे छोटे रियासतों के युवराजों का राज्याभिषेक है। 4 . क्या ये मुद्दों की जीत है - तब शायद महंगाई, 60 सालों में देश में हुआ विकास, अल्‍पसंख्‍यक समुदाय का विकास ( वैसे मैं बहुसंख्‍यक और अल्‍पसंख्‍यक के सिद्धा

सदा ही रहो चलते

''बिना रुके , मंजिल की और रहो बढ़ते । पर्वत श्रृंखालाओ को जीतने की गर है चाहत , एक-एक करके ,चोटियों पर सदा रहो चढ़ते । सबक अच्छाईयों के सीखने के लिए । सद साहित्य को हरदम रहो पढ़ते। सफलता पाने का बस रास्ता है यही । गिर-गिर के संभलो मगर सदा ही रहो चलते । ''

नई सरकार गठन --मजबूर जन-जन

जनता तो सदैव ही मजबूर है सिर्फ़ वोट देने के लिए , आगे मंत्री, पद,कार्य समिति, शासन आदि में तो न पहले कोई उसे पूछता था न अब लोकतंत्र में वोट के बाद तो खरीद फरोख्त पर भी कोई ध्यान नही देता वही ""कोऊ नृप होय हमें का हानीं । "" वही चहरे घूम घूम कर -जो मुद्दतों से कोई गुणात्मक कार्य नही कर पाये -आजाते हैं जो करेंगे वही मानने, कराने, भुगतने को तैयार रहें। सदा की तरह । यथा स्थिति वाले लोग आगये।

हम तो बस करतब दिखा रहे हैं......!!

हम तो बस करतब दिखा रहे हैं......!! चार बांसों के ऊपर झूलती रस्सी ..... रस्सी पर चलता नट .... अभी गिरा , अभी गिरा , अभी गिरा मगर नट तो नट है ना चलता जाता है .... बिना गिरे ही इस छोर से उस छोर पहुँच ही जाता है .....!! इस क्षण आशा और अगले ही पल इक सपना ध्वस्त ....!! अभी - अभी ..... इक क्षण भर की कोई उमंग और अगले ही पल से कोई अपार दुःख अनन्त काल तक अभी - अभी हम अच्छा - खासा बोल बतिया रहे थे और अभी अभी टांग ही टूट गई ....!! कभी बाल - बच्चों के बीच .... कभी सास बहु के बीच ..... कभी आदमी औरत के के बीच कभी मान - मनुहार के बीच कभी रार - तकरार के बीच .... कभी अच्छाई - बुराई के बीच कभी प्रशंसा - निंदा के बीच कभी बाप - बेटे के बीच कभी भाई - भाई के बीच कभी बॉस और कामगार के बीच कभी कलह और खुशियों के बीच कभी सुख और के बीच .... जैसे एक अंतहीन रस्सी इस छोर से उस छोर तक बिना किसी डंडे के ही टंगी हुई है , और हम एक नट की भांति