एनडीए की हार और यूपीए की जीत ने मन को उदास भी किया है, बहुत कुछ सोचने को मजबूर किया। चुनाव परिणाम काफी ज्यादा आश्चर्यजनक रहे। न एनडीए को अपनी इतनी बुरी हार का अंदेशा था और न ही कांग्रेस को इतनी सफ़लता की उम्मीद। फिर ये हुआ क्या, क्या जनता के अंदर कोई चुपचाप लहर चल रही थी जिसे कांग्रेस, बीजेपी और एक मतदाता के रूप में आप और हम महसूस नहीं कर पाए। फिर ऐसा क्या हुआ की परिणाम ऐसा आया। कुछ प्रश्न सामने आए हैं- 1. क्या सोचती है जनता - जो सोचते है वो वोट नहीं डालते और जो नहीं सोचते वो वोट डालते है। 2. क्या ये डेमोक्रेसी की जीत है - तब शायद 75 फीसदी वोटिंग होती न की 50 फीसदी से कम। 3 . क्या ये युवा वर्ग की जीत है - लगभग 50 सांसद युवा माने जा रहे है, इनमे से कितने आप-हममें से है, वो युवा वर्ग के प्रतिनिधि माने जाएंगे या पारिवारिक राजनीति के वारिस, मुझको तो कई बार ये लगता है ये प्रक्रिया छोटे छोटे रियासतों के युवराजों का राज्याभिषेक है। 4 . क्या ये मुद्दों की जीत है - तब शायद महंगाई, 60 सालों में देश में हुआ विकास, अल्पसंख्यक समुदाय का विकास ( वैसे मैं बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक के सिद्धा