रोज़ सुलगने से अच्छा है धूं धूं कर जल जाने दो ....शायद यह मेरी पहली और आखरी विवादित पोस्ट हो रोज़ सुलगने से अच्छा है धूं धूं कर जल जाने दो ....पढने में यह कथन बहुत, बहुत बहतरीन, और मधुर लगते है, हम समझते हैं के खुद को उंचा उठाने के लिए किसी दुसरे को नीचा गिरा दो, हम ऊपर उठ जायेंगे ,हम खुद अपने मुंह मिया मिट्ठू बन कर, सोचते हैं के हम धार्मिक है , हम राष्ट्रभक्त है ,हम धर्म निरपेक्ष है और हम उदार है ,किसी को भी गाली बक कर, या नीचा दिखा कर, कभी कोई महान नहीं हुआ है ,ऐसे लोगों को हमारे धर्म पुराणों में ,राक्षस ही कहा गया है, यह सब काम किसी धर्म से जुड़े लोगों के नहीं थे बलके रावण,कोरव , कंस , फिरओन जेसे ना जाने कितने लोग थे जो राक्षस थे और उन्हें इश्वर ने सुधार का अवसर दिया कई वाणिया भेजीं लेकिन उनका अंत सबके सामने है, खुदा करे हम ऐसे राक्षस जो सो कोल्ड यानी खुद अपने मुंह मिया मिट्ठू राष्ट्रवादी,इमानदार,चरित्रवान,धर्मप्रेमी और उदार पुरुष ना बने ,क्योंकि इस युग में ऐसे राक्षस बनने से तो मोंत बहतर है ................ दोस्तों, मेरी यह कोरी बकवास ,उबाऊ जरुर