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Showing posts from November 26, 2010

खोजो नई राहें

मुझसे ही मंजिल का                   पता क्यु  पूछते हैं सब ? एसा करके बदनाम...............                    मुझे कर देते  हैं सब ! मै तो कोई मंजिल नहीं                जो दूर तलख जाउंगी ! राह मै छोड़ कर फिर .........               दूर निकल जाउंगी ! मेरी मंजिल  के तो              और भी कई राही हैं ! तुम्हें तन्हा फिर .............              कहाँ तलख ले जाउंगी ! मुझसे यु न लिपटो             कबसे ये दोहराती हु ! मेरा तो आस्तित्व है वो            कहाँ छोड़ पाती हु ! मेरी आगोश मै बस       आह ...... के सिवा कुच्छ भी नहीं  ! तुम्हारी कोई नहीं मै .............            बस ये जरा ख्याल करो ! और आज ही से .....................         नई मंजिल की राह तलाश करो !  

west u.p.me highcourt bench

पिछले दो-तीन दशक से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाइकोर्ट बैंच के लिए आन्दोलन चला आ रहा है और आश्चर्य की बात यह है कि हर सरकार खुद को जन-हितकारी होने का दावा करती है और जनहित किसमे है इस पर गौर नहीं करती है.यदि हम सीधे सीधे ही इस मुद्दे पर ध्यान देते हैं तो यह केवल वकीलों के फायदे का मुद्दा दीखता है क्योंकि वकीलों का इसमें आर्थिक फायदा दीखता है किन्तु यदि मामले की तह में जाते हैं तो यह जनता के हित में ज्यादा होगा कि हाई कोर्ट की बेंच उनके समीप हो क्योंकि वकील तो फिर भी अपने आने जाने का खर्चा अपनी फीस में जोड़कर अपने मुवक्किल से ले लेंगे किन्तु जनता पर इसके कारण जो आर्थिक दबाव पड़ता है उसकी भरपाई कहीं नहीं हो सकती.साथ ही यह भी देखने में आया है की कुछ वकील भी मुवक्किल के दूर होने का फायदा उठाते हैं और दूर होने के कारण उससे खर्चे के नाम पर गलत पैसे मांगते हैं.ऐसे में कानून मंत्री वीरप्पा मोइली का यह कहना कि वेस्ट में बेंच का कोई प्रस्ताव नहीं वकीलों से ज्यादा जनता को बुरा लगना चाहिए क्योंकि वकीलों का इसमें केवल कुछ आर्थिक फायदा है जबकि जनता कि ज़िन्दगी इससे जुडी है इस आन्दोलन कि सफलता में बाधा

मुक्तिका: सच्चा नेह ---संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:                                                                                                                                       सच्चा नेह संजीव 'सलिल' * तुमने मुझसे सच्चा नेह लगाया था. पीट ढिंढोरा जग को व्यर्थ बताया था.. मेरे शक-विश्वास न तुमको ज्ञात तनिक. सत-शिव-सुंदर नहीं पिघलने पाया था.. पूजा क्यों केवल निज हित का हेतु बनी? तुझको भरमाता तेरा ही साया था.. चाँद दिखा आकर्षित तुझको किया तभी गीत चाँदनी का तूने रच-गाया था.. माँगा हिन्दी का, पाया अंग्रेजी का फूल तभी तो पैरों तले दबाया था.. प्रीत अमिय संदेह ज़हर है सच मानो. इसे हृदय में उसको कंठ बसाया था.. जूठा-मैला किया तुम्हींने, निर्मल था व्यथा-कथा को नहीं 'सलिल' ने गाया था.. ******************************