Skip to main content

Posts

Showing posts from March 12, 2009
कवितायें प्रो. वीणा तिवारी कभी-कभी कभी-कभी ऐसा भी होता हैकोई अक्स, शब्दया वाक्य का टुकडारक्त में घुल-मिल जाता है। फ़िर उससे बचने को कनपटी की नस दबाओ उँगलियों में कलम पकडो या पाँव के नाखून सेधरती की मिट्टी कुरेदो वह घड़ी की टिक-टिक-साअनवरत शिराओं में दौड़ता-बजता रहता है. कभी-कभी ऐसा क्यों होता है? ************************************ क्या-क्यों? क्या हो रहा है? क्यों हो रहा है? इस 'क्या' और 'क्यों' को न तो हम जानना चाहते हैं न ही जानकर मानना बल्कि प्रश्न के भय से उत्तर की तरफ पीठ करके सारी उम्र नदी की रेत में सुई तलाशते हैं. ************************* मन दूसरों की छोटी-छोटी भूलें आँखों पर चढी परायेपन की दूरबीन बड़े-बड़े अपराध दिखाती है जिनकी सजा फांसी भी कम लगती है अपनों की बात आने पर ये मन भुरभुरी मिट्टी बन जाता है जिसमें वह अपराध कहीं भीतर दब जाता है. फिर सजा का सवाल कहाँ रह जाता है? ************************************** बसंतोत्सव पर विशेष श्री जयदेव रचित गीत गोविन्द महीयसी महादेवी वर्मा छाया सरस बसंत विपिन में, करते श्याम विहार. युवती जनों के संग रास रच करते श्याम व

सूअर का माँस खाना क्यूँ मना है?

"इस बार थोडा अलग मगर वास्तविकता के बेहद करीब, यह लेख आप ज़रूर पढ़े, मेरा निवेदन है कि आप ज़रूर पढें और पढने से ज्यादा समझें क्यूँकि केवल पढने से ज़रूरी है उसको पढ़ कर समझना | लेकिन होता क्या है कुछ लोग अगर उनके मतलब का लेख नहीं होता है तो उसे या तो पढ़ते ही नहीं हैं और अगर पढ़ते भी हैं तो बिना जाने बूझे अनाप शनाप कमेंट्स कर देते हैं | उदहारण स्वरुप अगर किसी ने लिखा कि मांसाहार खाना जायज़ है| तो उसके फलस्वरूप उस विषय के विरोध में बहुत कुछ अनाप शनाप बातें लिख डालते है | अपनी बातें बेतुके तर्कों से भर कर सिद्ध कर देतें हैं, मगर वहीँ कुछ लोग अपनी बात सही ढंग से लिखते हैं | मैं मानता हूँ कि मुझे अभी पूर्ण जानकारी हर एक विषय में नहीं है और मैं अभी लेखन में और ब्लॉग में नया और शिशु मात्र हूँ, मगर मुझे इतना पता है कि मैं जो लिखता हूँ वो सत्य है ! अब आप ज़रूर उद्वेलित होंगे कि वाह सलीम बाबू ! आप जो भी लिखते हैं वो सत्य है और बाकी सब झूठ| तो जनाब मेरा हमेशा की तरह एक ही जवाब मैं जो भी लिखता हूँ वो इसलिए सत्य है क्यूंकि मैं केवल वेदों, पुराण, भविष्य पुराण और कुरान, हदीश और बाइबल आदि में दिए

109 साल की उम्र में भी कायम है देशभक्ती का जज्बा

ग्वालियर। दिल में जज्बा हो तो किसी काम को करने के लिए उम्र आड़े नहीं आती। ग्वालियर में रहने वाले 109 साल के बुजुर्ग अपने शहर में लगी स्वतंत्रता सेनानियों की मूर्तियों के रखरखाव में लगातार जुटे हैं। आजादी की लड़ाई में जिन लोगों ने योगदान दिया उनमें से एक है कक्का डोंगर सिंह। 109 साल के कक्का डोंगर सिंह आज भी युवाओं को इस बात के लिए प्रेरित करते हैं कि आजादी की जंग के नायकों को वे याद रखें क्योकि उनकी वजह से हम आजाद हैं। ये देन है उन वकील बैरिस्टर और बुद्धीजीवियों की जिन्होंने अपना सब कुछ खोकर हमें लोकतंत्र की तरफ भेजा और लोकतंत्र स्थापित किया। कक्का डोंगर सिंह ने आजादी के बाद कोशिश की कि ग्वालियर में उन महापुरषों की मुर्तियां लगायी जांए जिन्होंने आजादी की जंग का नेतृत्व किया उनकी कोशिशे रंग लायी। महात्मा गांधी, डॉक्टर अम्बेडकर, लाल बहादुर शास्त्री, रानी लक्ष्मीबाई जैसी कई लोगों की प्रतिमाएं ग्वालियर में लगाई गईं। अब कक्का डोंगर सिंह इन मूर्तियों की लगातार खुद सफाई करते हैं। कक्का को अभी भी इस बात का मलाल है कि जब पूरा देश 15 अगस्त 1947 को आजादी का जश्न मना रहा था उसी दौरान रियासत कालीन

कहां गई तिलक होली और होली अपराध कब से ?

कहा गई तिलक होली ? तिलक होली , के चर्चे सुन रहा था पर पहले मुझे लगा की ये स्थानीय किसी संगठन की उपज होगी  जो की अक्सर तीज  त्योहरों के आते ही  आये दिन कोई नया शगुफ़ा छोड़ देते है ,   पर बाद में मेरी नजर शहर में लगे ऐसे होर्डिग पर पडी पहले मेरी  समझ में नही आया कि  ये क्या बला है  फिर बाद  में ध्यान से देखने पे मुझे दिखाई दिया   "जिसमे होली खेलना अपराध है लिखा था"  ये वही विज्ञापन है  अब तो आपको विश्वाश हो गया अगर नहीं हुआ और कुछ दीखता हु अब देख लिया आपने चलिए कल मै राज भवन , मुख्यमंत्री निवास  और शहर में खेली गई  होली के चित्र भी आपको दिखाऊगा    जंहा  दूर दूर तक कही तिलक होली का   नामो निशान नहीं है फिर ये सब क्यों ? सस्ती लोकपियता के लिए या कुछ और ?  मेरी परेशानी ये नहीं बल्कि ये है   अब आप ही बताइए की होली पर्व ,  खेलना कब से अपराध हो गया है ये मै नहीं ये विज्ञापन कह रहा है जो की दैनिक भास्कर ने जारी किया है और ऐसे होर्डिग से शहर पटा पड़ा है . मेरे एक मित्र  http://anilpusadkar.blogspot.com/ ने ब्लाग में इसे बड़े विस्तार से लिखा था पर उस समय भी मै नहीं समझ