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Showing posts from July 5, 2010

लो क सं घ र्ष !: शमशान

चुप्पी ख़ामोशी उदासी ओढ़े हर शमशान लाशों, लकड़ियों और कफन के इंतजार में शिद्दत के साथ मुद्दत से अपनी भूमिका में खड़ा है न जाने कितनी लाशें अब तक हो चुकी होंगी पंचतत्व में विलीन गुमनामी के अँधेरे में खो चुके हैं - न जाने कितने हाड़-मास के पुतले स्मृतियों में कुछ शेष रह जाती हैं आकृतियाँ कुछ आकृतियाँ छोड़ जाती हैं अपने कामों का इतिहास -सुनील दत्ता

सासू जी को ख़त ..

यह कहानी एक प्रेम कहानी है जो॥ एक लड़का उत्तर प्रदेश का रहने वाला है दिल्ली में पढाई के लिए आया है पढाई करते करते एक लड़की को दिल दे बैठता है लड़की चंडीगढ़ की होती लड़की अपने परिजनों को अपनी शादी उस लडके से करने के राजी कर लेती है॥ और लडके से कहती है की आप अपने घर वालो से बात कर लो लड़का कहता है तुम हमारी माँ को एक ख़त भेज दो क्यों की मै इस बारे में पहले माँ के पास नहीं जा सकता हूँ॥ अलादाकी अपनी सासू माँ को ख़त लिखती है और क्या लिखती है पढ़िए॥ !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!१!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! प्रिय पकज की माँ ... aआदरणीय पंकज की माँ ,,मै आप का पंकज बड़ा वो है॥ कभी कभी हमें रास्ते में क्या क्या करता है,॥ वह मुझे चिढाता है और कहता है की हे॥ मेघ राज़ थोड़ी से बरसात कर दो, हवाओं से कहता है हे हवाओं थोड़ी सी दया करो॥ जिससे मौसम अंगडाई लेने लगे। इसकी रशिली बोली कोयल की तरह मन को आनंदित कर दे। इसके पैर घुघरू से सजे हो और थिरकने लगे, इतना ही नहीं कभी कभी वह मुझे पकड़ लेता है। और मुझसे बरजोरी करने लगता है। मेरी शि

मै प्यारा सावन हूँ...

मै सपनों का अनोखा सावन हूँ॥ जो झमक झमक के बरस रहा हूँ॥ मै भी प्यासा उस पल का॥ जिस पल के कारण ठमक रहा हूँ॥ जब मै आटा प्यास बुझाता॥ वीय वियोग दोनों को मिलाता॥ हरी भरी बगिया के अन्दर ॥ मोर नाचता बीन बजाता ॥ मै उसके आँगन के अन्दर॥ सुन्दर बनके उछल रहा हूँ॥ कोयल गीत सुनाती रहती॥ चातक चकोर को बुलाता॥ इन फूलो की सुन्दर कलियों पर॥ चंचंल भ्रमर घूमने आता॥ सदा कदा नभ मंडल में मै॥ लाठी ले के मटक रहा हूँ॥ खिल जाते है वन उपवन सब॥ जीव जंतु सब आगे बढ़ जाते॥ खिला गुलाब किसानन के घर॥ उनके दुःख दारुण कट जाते॥ उस सुन्दर बेला में मै भी॥ धीरे धीरे बिदक रहा हूँ/॥ मै सावन हूँ॥ शम्भू नाथ