सारांश यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ----- गीत-- गुनुगुनाओ आज एसा गीत कोई.... कवि ! गुनुगुनाओ आज. ... . सखि ! गुनगुनाओ आज , एसा गीत कोई । बहने लगे रवि रश्मि से भी, प्रीति की शीतल हवाएं । प्रेम के संगीत सुर को- लगें कंटक गुनगुनाने | द्वेष द्वंद्वों के ह्रदय को - रागिनी के स्वर सुहाएँ. वैर और विद्वेष को , बहाने लगे प्रिय मीत कोई || अहं में जो स्वयं को जकडे हुए | काष्ठवत और लोष्ठ्वत अकड़े खड़े | पिघलकर - नवनीत बन जाएँ सभी | देश के दुश्मन , औ आतंकी यथा- देश द्रोही और द्रोही- राष्ट्र और समाज के ; जोश में भर लगें वे भी गुनगुनाने, राष्ट्र भक्ति के वे - शुच सुन्दर तराने | आज अंतस में बसालें , सुहृद सी ऋजु नीति कोई || वे अकर्मी औ कुकर्मी जन सभी लिप्त हैं जो अनय और अनीति में | अनाचारों का तमस- चहुँ ओर फैला ; छागये घन क्षितिज पर अभिचार के | धुंध फ़ैली , स्वार्थ, कुंठा , भ्रम तथा- अज्ञान की | ज्ञान का इक दीप जल जाए सभी में | सब अनय के भाव , बन जाएँ - विनय की रीति कोई || ----------- हस्त लिखित गीत को पढ़ने के लिए उसके ऊपर क्लिक करें |