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Showing posts from March 25, 2010

संगीत पर सिनेमा, चार साल और चार दिन की रिलीज

इंडियन ओशन पर डाकुमेंट्री फिल्‍म की निर्माण कथा जयदीप वर्मा हिंदुस्तान के कितने बैंड हैं, जो ‘भोर’ का सही मतलब भी जानते होंगे? कितने हैं जो पीयूष मिश्रा के गुस्से से भरे (अरे रुक जा रे बंदे) शब्दों को ‘एंथम ऑफ आवर टाइम्स’ बना सकते हैं? क्या किसी को पता भी होगा ‘रेवा’ कहां बहती है? और मज़े की बात – इंडियन ओशन सिर्फ़ इन्हीं वजहों से महान नहीं है। उनका संगीत बहुतों के लिए रॉक होते हुए भी सबसे असली ‘हिंदुस्तानी संगीत’ है। गिटार के साथ (बंगाल की) गाबगुबी, ड्रम-सेट के साथ क्लासिकल आलाप, और एलेक्ट्रिक गिटार पर कबीर, सिर्फ़ फ़्यूज़न नहीं है। ये उन्‍हीं सीमाओं को ध्वस्त करना है, जो कबीर और रेवा ने कभी नहीं मानीं। जो संगीत ने कभी नहीं मानीं। सुस्मित सेन, राहुल राम, अशीम चक्रवर्ती और अमित किलम से मिलकर बना ये बैंड अब अपने जीवन और संगीत पर बनी एक डाक्युमेंट्री फिल्म ‘लीविंग होम’ के ज़रिये सिर्फ एक हफ्ते के लिए ‘बिग सिनेमाज़’ के थिएटरों में आ रहा है (2 अप्रैल 2010 को)। फिल्म के निर्देशक जयदीप वर्मा का ये लेख (3 भागों में, यहां पहला भाग है) इस लंबे, अक्सर थका देने वाले सफर को शब्दों में फिर से

लो क सं घ र्ष !: भारत सरकार का विज्ञापन है या निम्नकोटि के शोहदों का उवाच

पहले माओवादियों ने खुशहाल जीवन का वादा किया फिर , वे मेरे पति को अगवा कर ले गए फिर , उन्होंने गाँव के स्कूल को उड़ा डाला अब , वे मेरी 14 साल की लड़की को ले जाना चाहते हैं रोको , रोको , भगवान के लिए इस अत्याचार को रोको यह विज्ञापन भारत सरकार के गृहमंत्रालय द्वारा जनहित में जारी किया गया है अब , वे मेरी 14 साल की लड़की को ले जाना चाहते हैं यह बात संभावनाओं पर है और इस तरह के आरोप प्रत्यारोप मोहल्ले के तुच्छ किस्म के शोहदे किया करते हैं। भारत सरकार के विज्ञापनों में इस तरह के अनर्गल आरोप लगाने की परंपरा नहीं रही है । गृह मंत्रालय माओवाद के कार्य क्रियाशील क्षेत्रों में भ्रष्टाचार को समाप्त करता है। विधि सम्मत व्यवस्था जब समाप्त होती है तब हिंसा का दौर शुरू होता है । आज देश की राजधानी दिल्ली से लेकर लखनऊ तक प्रत्येक विधि सम्मत कार्य को करवाने के लिए घूश की दरें तय हैं . घुश अदा न करने पर इतनी आपत्तियां लग जाएँगी की इस जनम में कार्य नहीं होगा। एक सादाहरण सा ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने में अच्छे-अच्छे लोगों को दलाल का सहारा लेना पड़ता है