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Showing posts from May 13, 2010

भोजपुरी दोहे: संजीव 'सलिल'

भोजपुरी दोहे: संजीव 'सलिल' * नेह-छोह रखाब सदा, आपन मन के जोश. सत्ता दान बल पाइ त, 'सलिल; न छाँड़ब होश.. * कइसे बिसरब नियति के, मन में लगल कचोट. खरे-खरे पीछे रहल, आगे आइल खोट.. * जीए के सहरा गइल, आरच्छन के हाथ. अनदेखी काबलियत कs, लख- हरि पीटल माथ.. * आस बन गइल सांस के, हाथ न पड़ल नकेल. खाली बतिय जरत बा, बाकी बचल न तेल.. * दामन दोस्तन से बचा, दुसमन से मत भाग. नहीं पराया आपना, ला लगावत आग.. * प्रेम बाग़ लहलहा के, क्षेम सबहिं के माँग. सूरज सबहिं बर धूप दे, मुर्गा सब के बाँग.. * शीशा के जेकर मकां, ऊहै पाथर फेंक. अपने घर खुद बार के, हाथ काय बर सेंक?. *

लो क सं घ र्ष !: एक बार एक जज साहब बोले

न्यायिक कार्य से छुट्टी पाने के बाद कुछ देर के लिए जज साहब का हमारे साथ बैठना हुआ। बातचीत के दौरान जज साहब बोले, ‘‘ मेरा एक मुसलमान दोस्त राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का कार्यकर्ता है।’’ मेरा संबंध उस लोकसभा क्षेत्र है जहां से किसी जमाने में सुभद्रा जोशी और अटल बिहारी बाजपेयी चुनाव लड़ा करते थे। सुभद्रा जोशी ने उस क्षेत्र में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से संबंधित बहुत सारे साहित्य अपने क्षेत्र में वितरित किये और तत्समय का यह किशोर रूचिपूर्वक उस साहित्य को पढ़ता रहा। किसान इंटर कालेज, महोली, जिला सीतापुर में मैंने इंटरमीडिएट में जुलाई 1963 में दाखिला लिया, वहां मेरा एक दोस्त एक दिन खेलकूद और व्यायाम के लिए मुझे अपने साथ ले गया तब मुझे पता लगा कि वह व्यायाम और खेलकूद के लिए संघ शाखा लगाती है। दूसरे दिन मेरे मना करने से पहले मेरे दोस्त ने मुझे खुद शाखा में जाने से यह कहकर मना कर दिया कि शाखा संचालक को मेरे वहां जाने पर आपत्ति थी। आगे शिक्षा ग्रहण के दौरान मैंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बारे में सुनकर और पढ़कर बहुत कुछ जाना समझा। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ

लो क सं घ र्ष !: ब्लॉग उत्सव 2010

सम्मानीय चिट्ठाकार बन्धुओं, सादर प्रणाम, आज दिनांक 12.05.2010 को परिकल्पना ब्लोगोत्सव-२०१० के अंतर्गत तेरहवें दिन प्रकाशित पोस्ट का लिंक- ......... इमरोज़ का अर्थ जो हो , पर मेरी दृष्टि में इसका अर्थ है ' प्यार ' : रश्मि प्रभा http://www.parikalpnaa.com/ 2010/05/blog-post_11.html अंग्रेजी की तरह हिंदी ब्लोगिंग को भी अपनी पकड़ मजबूत बनानी होगी : अमरजीत कौर http://utsav.parikalpnaa.com/ 2010/05/blog-post_12.html लोग आरती उतारते हैं मैंने इक नज़्म उतारी है : अनिल ' मासूम http://www.parikalpnaa.com/ 2010/05/blog-post_7002.html पारुल पुखराज की तीन नज्में http://utsav.parikalpnaa.com/ 2010/05/blog-post_308.html ' भगवान् ने एक इमरोज़ बनाकर सांचा ही तोड़ दिया : सरस्वती प्रसाद http://www.parikalpnaa.com/ 2010/05/blog-post_12.html शिखा वार्ष्णेय का संस्मरण : वेनिस की एक शाम http://utsav.parikalpnaa.com/ 2010/05/blog-post_6286.html