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Showing posts from March 14, 2012

हॉकी -'हिंदी'' पीती अपमान का गरल !

हॉकी  -'हिंदी'' पीती अपमान का गरल !   एक  दिन  हॉकी  मिली   ; क्षुब्ध   थी  ,उसे रोष  था, नयन  थे अश्रु  भरे  मन में बड़ा आक्रोश था . अपमान की व्यथा-कथा    संक्षेप  में उसने कही ; धिक्कार !भारतवासियों   पर  उसने कही सब अनकही . पहले तो मुझको बनाया  देश का सिरमौर  खेल ; फिर दिया गुमनामियों के  गर्त में मुझको धकेल . सोने  से झोली  भरी   वो मेरा ही दौर था , ध्यानचंद से जादूगर थे   मेरा रुतबा  और था . कहकर रुकी तो  कंधे पर  मैं हाथ  रख  बोली   सुनो अब बात  मेरी  हो न यूँ  दुखी भोली . अरे क्यों रो रही है अपनी दुर्दशा पर ?   कर इसे सहन   मेरी तरह ही  पीती रह  अपमान का गरल  मैं ''हिंदी'' हूँ बहन ! मैं'' हिंदी '' हूँ बहन !!                                     शिखा कौशिक                         [हॉकी -हमारा राष्ट्रीय  खेल ]