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Showing posts from January 29, 2012

ईश्वर से बड़े पंच

कैलाश पर्वत के पवित्र सुरम्य व मनमोहक वातावरण में वसंत ऋतु के आगमन ने चार चांद लगा दिए। देवाधिदेव महादेव समाधि में विराजमान थे। पार्वती अकेले बैठे-बैठे बोर हो रहीं थीं। वे बार-बार विचार करतीं, ऐसे मनोरम वातावरण में भी महादेव को क्या सूझी कि समाधि में बैठ गए। उसी समय `नारायण, नारायण´ की ध्वनि सुनाई दी। भ्रमण करते हुए त्रिलोकी पत्रकार नारद आ पहुंचे। नारद तो ठहरे पत्रकार उन्हें तो सभी लोकों की ख़बरें चाहिए ताकि सभी को सूचना देकर मीडिया की ताकत से रूबरू कराते रहें। पार्वतीजी ने उनसे कुशल समाचार पूछे देवलोक, ब्रह्म लोक व विष्णु लोक के समाचार जानकर अपनी प्रिय सहेली लक्ष्मी व सरस्वती के हाल-चाल सुने।          नारदजी इस दौरान पार्वतीजी द्वारा परोसे गए नाश्ते के बाद लस्सी पी कर निवृत्त हो चुके थे। नाश्ते पर हाथ साफ़कर जब वे सीधे होकर बैठे तो पार्वती जी ने नारदजी से प्रश्न किया नारदजी आपने शादी-विवाह तो किया नहीं, आपका समय कैसे कटता होगा? मैं तो महादेवजी के समाधि पर बैठने वाले दिनों में ही इतनी बोर हो जाती हूं कि यहां से कहीं घूमने जाने को मन करता है ( किंतु महादेवजी को समाधि में छोड़कर कहीं जा