विनय बिहारी सिंह यह सत्रहवीं शताब्दी की बात है। पश्चिम बंगाल में रामप्रसाद सेन और मां काली का गीत एक दूसरे के पर्याय हैं। रामप्रसाद सेन सिर्फ रामप्रसाद के नाम से लोकप्रिय हैं। वे ६१ वर्ष तक इस पृथ्वी पर रहे। उनके लिखे मां काली के भजन सुनने वाले के दिल में उतर जाते हैं। मां आमाके कतो घुराबी (मां, मुझे कितना घुमाओगी, दर्शन क्यों नहीं देती?) इतना मधुर और दिल को छूने वाला है कि आज भी यह भक्ति संगीत का सिरमौर बना हुआ है। रामप्रसाद का स्वर इतना मीठा था कि जो उनका भजन सुनता, उनका दीवाना हो जाता। एक बार गंगा के किनारे वे भजन गा रहे थे और नवाब सिराजुद्दौला उधर से गुजर रहा था। उसने अपना बजरा रोका और रामप्रसाद को बुला लिया। रामप्रसाद ने दो ही भजन सुनाए और सिराजुद्दौला पर जादू सा असर हो गया। उसने अपने साथ उन्हें ले जाना चाहा, लेकिन वे राजी नहीं हुए। एक राजा ने कहा - यह आदमी मां काली में इतना डूबा हुआ है कि इसे कुछ होश नहीं है। इसकी एक एक सांस अपनी मां काली को समर्पित है। सन १७२० में जन्मे रामप्रसाद के पिता आयुर्वेद के प्रतिष्ठित डाक्टर थे। वे २४ परगना के कुमारहाटा में रहते थे। वे बेटे को भी डाक्टर