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Showing posts from February 27, 2009

श्रद्धा से याद किए जाते हैं काली भक्त रामप्रसाद

विनय बिहारी सिंह यह सत्रहवीं शताब्दी की बात है। पश्चिम बंगाल में रामप्रसाद सेन और मां काली का गीत एक दूसरे के पर्याय हैं। रामप्रसाद सेन सिर्फ रामप्रसाद के नाम से लोकप्रिय हैं। वे ६१ वर्ष तक इस पृथ्वी पर रहे। उनके लिखे मां काली के भजन सुनने वाले के दिल में उतर जाते हैं। मां आमाके कतो घुराबी (मां, मुझे कितना घुमाओगी, दर्शन क्यों नहीं देती?) इतना मधुर और दिल को छूने वाला है कि आज भी यह भक्ति संगीत का सिरमौर बना हुआ है। रामप्रसाद का स्वर इतना मीठा था कि जो उनका भजन सुनता, उनका दीवाना हो जाता। एक बार गंगा के किनारे वे भजन गा रहे थे और नवाब सिराजुद्दौला उधर से गुजर रहा था। उसने अपना बजरा रोका और रामप्रसाद को बुला लिया। रामप्रसाद ने दो ही भजन सुनाए और सिराजुद्दौला पर जादू सा असर हो गया। उसने अपने साथ उन्हें ले जाना चाहा, लेकिन वे राजी नहीं हुए। एक राजा ने कहा - यह आदमी मां काली में इतना डूबा हुआ है कि इसे कुछ होश नहीं है। इसकी एक एक सांस अपनी मां काली को समर्पित है। सन १७२० में जन्मे रामप्रसाद के पिता आयुर्वेद के प्रतिष्ठित डाक्टर थे। वे २४ परगना के कुमारहाटा में रहते थे। वे बेटे को भी डाक्टर

मांसाहार क्यूँ जायज़ है?

अक्सर कुछ लोगों के मन में यह आता ही होगा कि जानवरों की हत्या एक क्रूर और निर्दयतापूर्ण कार्य है तो क्यूँ लोग मांस खाते हैं| जहाँ तक मेरा सवाल है मैं भी एक मांसाहारी हूँ और मुझसे मेरे परिवार के लोग और जानने वाले (जो शाकाहारी हैं) अक्सर कहते हैं कि आप माँस खाते हो और बेज़ुबान जानवरों पर अत्याचार करके जानवरों के अधिकारों का हनन करते हो | मैं जिला पीलीभीत का रहने वाला हूँ वर्तमान में लखनऊ में रहता हूँ | पीलीभीत जिला तो एक जानवरों की प्रेमिका का जिला भी है जिसे जानवरों से बहुत प्यार है | मैं उसी जिले में पला-बढा, १९९८ में मैं लखनऊ आ गया लगभग दस साल बाद पिछले महीने ही मैं २६ जनवरी की छुट्टियों पर गया तो शारदा नदी ने गाँव तो गाँव जंगल तक कटान कर दिया है और जानवरों की प्रेमिका के जिले में किसानों की इतनी दुर्दशा तो शायेद आदिवासी इलाके में भी नहीं होगी| वहां किसानों की हालत जानवरों से बदतर हो गई थी | जानवरों की तो बात ही क्या| अल्लाह का शुक्र था मेरा गाँव अभी कटान से बचा हुआ था | लेकिन मुझे वहां का मंज़र देख कर वाकई रोना सा आगया |   ख़ैर ! बात चल रही थी - मांसाहार की.....   शाकाहार ने अब संसार

करियर बनाने के नाम पर खुल रही हैं जिस्मफरोशी की दुकानें!

नेशनल ज्योग्राफिक चैनल पर एक कार्यक्रम देख रहा था- 'द लार्ज प्लेन क्रैश'। इसमें दिखा रहे थे कि एवीयेशन कैरियर कितना जोखिम भरा है किसी पायलट के उपर प्लेन उड़ाते हुए कितनी बड़ी जिम्मेदारी होती है। एक जरा सी चूक बड़े हादसे का कारण बन सकती है। यहां केवल उन्हीं लोगों को रखा जाता है जो इसके लिये डि जर्व करते हैं, और इतनी बड़ी जिम्मेदारी उठाने का साहस, समझदारी, योग्यता रखते हैं। इस इण्डस्ट्री के लिये योग्य पात्रों का चयन कई फिल्टर प्रक्रियाओं के बाद ही हो पाता है। कुल मिलाकर यह एक शानदार प्रक्रिया है जो जरूरी भी है। अब बात करते है निजी स्वार्थ की खातिर किस तरह से इस बेहद जिम्मदारी वाले काम को ग्लैमर से जोड़कर वास्तविकताओं से मुंह मोड़ लिया गया है, और धोखाधड़ी करने के नये तरीके को अपनाया गया है। मेरठ कोई खास बड़ा शहर नही है और न ही अभी मेट्रो सिटी होने की राह पर चला है। इस शहर में अय्याशी और जिस्मफरोशी के नये-नये तरीकों को परोसने वाली दुकानें अब एवीयेशन इण्डस्ट्री में कैरियर बनाने की आड़ में चलने लगी हैं। यहां एवीयेशन फील्ड में करियर बनाने के नाम पर बहुत सारे छोटे बड़े इंस्टीट्यूट खुल गये हैं

गोपिकांत महतो. जी की सराहनीय कविता

आज से हम सराहनीय ९ कविताओं को प्रकाशित करने की शुरुआत कर रहे है इन कविताओं को किसी भी प्रकार की श्रेणी नहीं दी गयी है हमें जिस कविता को पहले प्रकाशित करने में सुबिधा हो रही है हम पहले उन्हें ही प्रकाशित कर रहे है !इसी क्रम की शुरुआत हम कर रहे है गोपिकांत महतो जी की कविता ''एकता.....ये दीप मेरे'' से गोपिकांत जी आकिर्टेक्ट है और लोग इन्हे समाज सेवक ही हैसियत से भी जानते है ! यह रांची झारखण्ड से बास्ता रखते है !तो यह रही इनकी कविता ! एकता.....ये दीप मेरे। ये दीप तू जलता रहना दिग्दर्सन करता रहना पथ को उजजवल करने वाला तू उन्ही जलता रहना.......हिन्दुस्तान की उच्छ्वास को. रोशन कर दो अंचल को अपने लोउ को प्रजवलित कर लो तृप्त कर दो हमारी प्यास को........ हवा ,आधी और झोका की कठिनाई तो आती रहेगी, पर तू होना मत डगमग क्यूंकि मैं साथ हूँ सजग. कितना मुस्किले सहा है हमने लोउ की गरिमा को बनाने के लिए. सिर्फ याद करते है राष्टीय छुट्टी में साल भर है किसी कोने में..... तुम्हे प्रजव्लित करने का अनावाषा ही अवाषा हुआ, ये मेरे जिंदगी का कठिन अनुभव का एह्साह हुआ. तेरी लोउ ने मुझे राह दिखा दिया

रूपेश श्रीवास्तव भी इसका अपवाद नहीं।

हर व्यक्ति कि अन्दर से ये ख्वाहिस होती है कि वह सराहा जाय लोग उसकी तारीफ करें कोई भी इसका अपवाद नहीं। उदाहरण- आज देश में लाखों स्कूल कालेज पार्क इत्यादि गाँधी परीवार के सदस्यों{राहुल, प्रियंका ,सोनिया ,नेहरू,राजीव,संजय,इन्दिरा}के नाम पर है क्यों? ताकि इन लोगों का नाम हो और क्या। रूपेश श्रीवास्तव भी इसका अपवाद नहीं। अपने नाम के लिये इसने भडा़स के नाम से नकली ब्लाग बनाया। जिसपर आप नेहरू गाधी ,अफजल गुरू की बुराई नहीं कर सकते क्यों कि अफजल के सगे समबन्धी भोंकने लगते है? अपने नाम के लिये ये बीच वाली कटेगरी के लोगों से ब्लाग लिखवाते हैं ताकि इनका नाम हो। हर वक्त हिन्दुस्तान के दर्द का विरोध करते हैं ताकि ससती लोक्प्रियता हासिल हो जाये। यसवन्त भाई के पीछे पड़ गये है। कल्युग है भाई यही सब कर के आज कल नाम कमाया जा सकता है।