मुक्तिका : संजीव 'सलिल' * काम रहजन का करे नाम से रहबर क्यों है? मौला इस देश का नेता हुआ कायर क्यों है?? खोल अखबार- खबर सच से बेखबर क्यों है? फिर जमीं पर कहीं मस्जिद, कहीं मंदर क्यों है? जो है खूनी उकाब उसको अता की ताकत. भोला-मासूम परिंदा नहीं जबर क्यों है?? जिसने पैदा किया तुझको तेरी औलादों को. आदमी के लिए औरत रही चौसर क्यों है?? एक ही माँ ने हमें दूध पिलाकर पाला. पीठ हिन्दोस्तां की पाक का खंजर क्यों है?? लाख खाता है कसम रोज वफ़ा की आदम. कर न सका आज तलक बोल तो जौहर क्यों है?? पेट पलता है तेरा और मेरा भी जिससे- कामचोरी की जगह, बोल ये दफ्तर क्यों है?? ना वचन सात, ना फेरे ही लुभाते तुझको. राह देखा किया जिसकी तू, वो कोहबर क्यों है?? हर बशर चाहता औरत तो पाक-साफ़ रहे. बाँह में इसको लिए, चाह में गौहर क्यों है?? पढ़ के पुस्तक कोई नादान से दाना न हुआ. ढाई आखर न पढ़े, पढ़ के निरक्षर क्यों है?? फ़ौज में क्यों नहीं नेताओं के बेटे जाते? पूछा जनता ने तो नेता जी निरुत्तर क्यों है?? बूढ़े माँ-बाप की खातिर न जगह है दिल में. काट-तन-पेट खड़ा तुमने किया घर क्यों है?