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Showing posts from June 18, 2010

ऐसी क्यों है जिंदगी

Source: हर्ष मंदर | उस घटना को बीस वर्ष हो गए, जब आयशा बेगम का पति देसी शराब के नशे में चूर बेहोशी की हालत में एक खुले कुएं में गिर गया और डूब गया। मुझे मालूम नहीं कि आखिरी क्षणों में उसके जेहन में अपनी युवा पत्नी का ख्याल कौंधा था या नहीं, जो उस वक्त महज 25 साल की थी, जिसे वह पांच छोटे-छोटे बच्चों की जिम्मेदारी के साथ पीछे छोड़ गया था। यह भी अनुमान लगाना उतना ही मुश्किल है कि क्या उसका इस तरह चले जाना आयशा के लिए पिटाई और अपमान से भरे तमाम नाउम्मीद सालों से छुटकारा था या एक नए अध्याय की शुरुआत थी, जो पहले से भी ज्यादा गहरी पीड़ाओं, श्रम और नाउम्मीदी का सबब थे। शायद दोनों ही बातें सच थीं। आयशा तब महज नौ साल की थी, जब उसके पिता ने एक पंद्रह साल के रिक्शा चलाने वाले आदमी से उसकी शादी कर दी। शादी के बाद पहले दिन से उसका जेठ उसे जमींदार के खेतों में काम करने के लिए भेजने लगा। दिन भर काम करने के लिए उसे सिर्फ एक रोटी दी जाती। खेतों में जाने से पहले उसे घर का सारा काम निपटाना होता था, इसलिए वह सूरज उगने के बहुत पहले उठ जाती। वह अब भी छोटी बच्ची ही थी और उसे इतने कठिन श्रम की आदत नहीं

लो क सं घ र्ष !: अमेरिकी साम्राज्यवाद का रूप व एशिया - 1

आज इस भूमण्डलीयकरण के युग में जहाँ विश्व को एक ग्राम के रूप में देखने की बात स्वीकारी जा रही है वहीं इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता कि विभिन्न देशों में सामाजिक स्थिरता, समरसता और अखण्डता को तोड़ने हेतु साम्राज्यवादी शक्तियाँ भिन्न-भिन्न हथकण्डों का प्रयोग कर रही हैं। जहाँ वे एक ओर जन कल्याण की नई-नई सुविधाओं और स्कीमों का प्रचार प्रसार कर रही हैं वहीं दूसरी ओर अपने उद्देश्य की पूर्ति हेतु इसी जन के शोषण को घिनौना रूप देती द्रष्टव्य होती हैं। हम इस बात से भली-भाँति परिचित हैं कि अमेरिका ही इन सब रणनीतियों व षडयंत्रों का सूत्रधार है। वस्तुतः आज विश्व धरातल पर अमेरिका की जो छवि बनी हुई है उसे सुधारने हेतु व अपने घिनौने कार्यों पर पर्दा डालने हेतु ही इन जन कल्याण की सुविधाओं का छद्म रचा जा रहा है। वास्तविकता यह है कि अमेरिका अपनी इन्हीं रणनीतियों की आड़ में अपने वर्चस्व को कायम रखने का जो षडयंत्र रच रहा है, वह आतंकवाद का असल जनक है। यह बात ध्यान देने योग्य है कि उसके निशाने पर एशिया व अफ्रीका के देश ही प्रमुख रूप से हैं, जिसका प्रमुख कारण इन देशों के प्राकृतिक संसाधन व माल बेचने हेतु उपलब

हम तुझे जाने न देगे.गम कभी आने न देगे..

अग्नि को साक्षी मान कर॥ सात फेरे हम लिए॥ हम तुझे जाने न देगे॥ गम कभी आने न देगे॥ लड़ जाए उस बला से॥ जो तेरा अपमान करे॥ मांगना है मांग लो॥ हम आसमा के तारे देगे॥ हम तुझे जाने न देगे॥ गम कभी आने न देगे॥ जब तक ज़िंदा रहू जमी पर॥ हम तुम्हे हंसना सिखाये॥ गर कभी आये मुशीबत॥ साथ मिलकर उसे भगाए॥ कल तेरा कोई मीत आये॥ हम उसे आने न देगे॥ हम तुझे जाने न देगे॥ गम कभी आने न देगे॥ हंसी खुसी से रहे सदा सब॥ यही दुआ तुम कीजिये॥ कोई भूँखा न जाए द्वार से॥ उसको खाना दीजिये॥ गर कोई फिर आँख दिखाए॥ आँख को हम फोड़ देगे॥ हम तुझे जाने न देगे॥ गम कभी आने न देगे॥

दुल्हा बना सियार..

चूहा आता ढोल बजाते॥ बिल्ली तान लगाती है॥ मेढक बाबा फुदक चलते॥ छू छु गीत सुनाती है॥ कुत्ता बाबू भौ भौ करके॥ डांस खूब दिखाते है॥ बगुला भगत भीत खटिया पर॥ खूब मिठाई खाते है॥ दुल्हा बना सियार है आता॥ संग जंगल की मोढी है॥ झम झम पायल बाजे झींगुर के। सात रंग की घोड़ी है॥ कुआ गीदड़ बने घराती॥ कोयल गारी गाती है॥ उल्लू मामा बन के धूमे॥ टोपी सिर पर भाती है॥ पहुच बरात आयी दरवाजे॥ गदहा हुक्म सुनाता है॥ धोती बांधे भालू दादा॥ दौड़े दौड़े आता है॥ गाजे बाजे जम कर बजते॥ खूब तमाशे चलते है॥ मौसा बन्दर है दुल्हे के॥ खूब चिबिल्ली करते है॥ दुल्हिन बैठी घर में रोती॥ सब सखिया समझाती है॥ दुल्हे की सब करे बडाई॥ दुल्हिन भी मुस्काती है॥ चूहा आता ढोल बजाते॥ बिल्ली तान लगाती है॥

लो क सं घ र्ष !: हिंसा और उपभोक्तावाद के दौर में सूफियों की प्रासंगिकता (अंतिम भाग)

आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टि में आमतौर पर रहस्यवादी दर्शन को सृजनात्मक नहीं माना जाता। उसे जीवन के यथार्थ को अनदेखा कर एक वायवी संसार में पलायन करने का रास्ता माना जाता है। लेकिन मनुष्य के मन को उदारता, प्रेम और समता की भावभूमि की ओर उन्मुख और प्रेरित करने के लिए रहस्यवादी प्रवृत्ति आधुनिक मनुष्य के काम की हो सकती है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने सूफियों के बारे में लिखा है: ‘‘हमारे देश के भक्तों और संतों की भाँति सूफी साधकों ने भी इसी अंतरतम के प्रेम पर आश्रित भाव-जगत की साधना को अपनाया है। यह साधना जितनी ही मनोरम है उतनी ही गंभीर भी। हमारे देश के अनेक सूफी कवियों ने इस प्रेम साधना को अपने काव्यों का प्रधान स्वर बनाया है। मलिक मुहम्मद जायसी का ‘पदमावत’ इस प्रेम साधना का एक अनुपम काव्य है। साधक के हृदय में जब प्रेम का उदय होता है तब सांसारिक वस्तुएँ उसके लिए तुच्छ हो जाती हैं, लेकिन संसार के जीवों के लिए उसका हृदय दया और प्रेम से परिपूर्ण रहता है। दूसरों के कष्ट का निवारण करने के लिए वह सब प्रकार से प्रयत्नशील रहता है और उसके लिए सभी प्रकार के कष्टों का स्वागत करता है। छोटे से छोटे से प्