अमेरिका के राजनीतिक कलैंडर में राष्ट्पतियों द्वारा स्टेट आँफ यूनियन का संबोधन परंपरागत रूप से बड़े पैमाने पर उत्साह के साथ सुना जाता है। टेलीविजन एवं अन्य माध्यमों से इसका व्यापक प्रचार किया जाता है। इस सम्बोधन में राष्ट्पति अपनी प्राथमिकताएं घोषित करते है। इसमें अन्तराष्ट्रीय मुद्दे प्रधान होते है। इस बार राष्ट्पति बराक ओबामा ने जब 27 जनवरी 2010 को स्टेट्स आँफ यूनियन को संबोधित किया तो वे काफी उत्तेजित दिखें। उन्होने अन्तराष्ट्रीय मुद्दो की चर्चा तक नहीं की। उन्होने अपना जोशीला भाषण घरेलू मुद्दों तक सीमित रखाः ’’मैं अमेरिका के लिये दूसरा स्थान स्वीकार नहीं कर सकता। चाहे जितनी मेहनत करनी पड़ें। चाहे यह जितना भी असुविधाजनक हो, यह समय उन समस्याओं के हल के लियें गंभीर होने का है, जो हमारे विकास में बाधा पैदा करते है।’’ उन्होने भारत, चीन और जर्मनी का नाम लेते हुए कहा कि ये देश किसी का इंतजार किये बगैर आगे बढ़ रहे हैं। इसलिये अमरिका को भी दूनिया में अपना शिखर स्थान कायम रखने के लिये इंतजार किये बगैर आगे बढ़ना होगा। ओबामा अपने संबोधन में नौकरियों की आउटसोर्सिग करने वाली अमेरिकी कंपनियों को चेत