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Showing posts from January 15, 2011

is bar saurav ham tumhare sath nahi.....

आई.पी.एल .-४ की नीलामी में सौरव गांगुली सहित अनेक प्रतिष्ठित खिलाडियों -सनथ जयसूर्या  ,चमिंडा वास,मार्टिन गुप्तिल,सीमोन केटीज़ , चमरा सिल्वा ,मार्क बाउचर  आदि को कोई खरीदार नहीं मिला .सौरव ने इसे अपनी प्रतिष्ठा के साथ जोड़कर ट्विट्टर पर के.के.आर. क़ा एड्रेस हटाकर अपने गुस्से क़ा इज़हार कर एक नया तूफ़ान खड़ा कर दिया. सौरव गांगुली जैसे टॉप ब्रेकेट के क्रिकेटर को कोई खरीदार न मिल पाने पर आई.पी.एल.कमिश्नर चिरायु अमीन ने कहा "क़ि टीमो क़ा मानना है क़ि पूर्व भारतीय कप्तान क़ा चार लाख डॉलर बेस मूल्य  ज्यादा है            .वेस्ट इन्दीस के पूर्व कप्तान ब्रायन लारा और क्रिस गिल क़ा भी यही हाल रहा."मामला विशुद्ध व्यावसायिक है फिर इसे सौरव गांगुली व् उनके प्रशंसकों ने अपनी प्रतिष्ठा से क्यों जोड़ दिया?यह समझ से परे है.हम सभी जानते हैं क़ि क्रिकेट क़ा २०-२० अर्थात टनाटन संस्करण  सिर्फ मनोरंजन व् पैसा बनाने क़ा खेल है फिर जब आप नीलामी के लिए बाज़ार में खड़े हो गए तो क्या प्रतिष्ठा-मान-सम्मान ?आपने खुद ही अपनी प्रतिष्ठा दांव पर  लगाई है और आई.पी.एल.टीम के मालिक पर दोष डाल  दिया        .कोलकाता ना

प्रायोजित सर्कस प्रायोजित हुल्लड़बाजी

कुछ हुड़दंगी कोलकाता में शाहरुख खान के पुतले जला रहे हैं। अंग्रेजी भाषा में जीवन के किसी भी क्षेत्र में अन्याय होने पर कहा जाता है कि ‘इट्स नॉट क्रिकेट’, अत: वहां क्रिकेट को भलेमानुष का खेल कहा जाता है। दुख की बात यह है कि अब क्रि केट मात्र व्यवसाय है। जब खिलाड़ी स्वयं की नीलामी को सहर्ष स्वीकार करें, तब किसी का नहीं खरीदा जाना अन्यायपूर्ण कैसे हो सकता है। क्या दुकान पर रखी कोई वस्तु ग्राहक से इसलिए खफा हो सकती है कि उसे खरीदा नहीं गया? एक नहीं वरन अनेक ग्राहकों ने सौरव गांगुली की सेवाओं को नहीं खरीदा। गोयाकि ‘बाजार से गुजरा हूं पर खरीदार नहीं..’, इसके लिए शाहरुख को कैसे दोष दिया जा सकता है। सौरव की कप्तानी में कोलकाता नाइट राइडर्स अब तक खेली हुई आईपीएल प्रतिस्पर्धा में सबसे पिछड़ी हुई टीम सिद्ध हुई। क्या कप्तान इसकी कोई जवाबदारी नहीं लेंगे? आईपीएल एक तमाशा, एक निर्मम व्यवसाय है। शाहरुख ने बहुत पूंजी लगाई है और अपने मुनाफे के प्रति वह सजग हैं। बाबू मोशाय सौरव गांगुली ने भारतीय क्रिकेट की बहुत सेवा की है, जिसके लिए वे यथेष्ट रूप से पुरस्कृत भी हुए हैं। परंतु आईपीएल अखाड़े में ग्लेडिएटर्

नवगीत : ओढ़ कुहासे की चादर संजीव वर्मा 'सलिल'

नवगीत :  ओढ़ कुहासे की चादर  संजीव वर्मा 'सलिल' * ओढ़ कुहासे की चादर, धरती लगाती दादी। ऊँघ रहा सतपुडा, लपेटे मटमैली खादी... * सूर्य अंगारों की सिगडी है, ठण्ड भगा ले भैया। श्वास-आस संग उछल-कूदकर नाचो ता-ता थैया। तुहिन कणों को हरित दूब, लगती कोमल गादी... * कुहरा छाया संबंधों पर, रिश्तों की गरमी पर। हुए कठोर आचरण अपने, कुहरा है नरमी पर। बेशरमी नेताओं ने, पहनी-ओढी-लादी... * नैतिकता की गाय काँपती, संयम छत टपके। हार गया श्रम कोशिश कर, कर बार-बार अबके। मूल्यों की ठठरी मरघट तक, ख़ुद ही पहुँचा दी... * भावनाओं को कामनाओं ने, हरदम ही कुचला। संयम-पंकज लालसाओं के पंक-फँसा-फिसला। अपने घर की अपने हाथों कर दी बर्बादी... * बसते-बसते उजड़ी बस्ती, फ़िर-फ़िर बसना है। बस न रहा ख़ुद पर तो, परबस 'सलिल' तरसना है। रसना रस ना ले, लालच ने लज्जा बिकवा दी... * हर 'मावस पश्चात् पूर्णिमा लाती उजियारा। मृतिका दीप काटता तम् की, युग-युग से कारा। तिमिर पिया, दीवाली ने जीवन जय गुंजा दी... *****

पुरुष वेश्या, आधुनिकता की नयी खोज

हाँ आपको सुनने में अटपटा जरूर लगा होगा . हाँ होगा भी कैसे नहीं है भी अटपटा .अगर इसे आधुनिकता की नयी खोज कहा जाये तो तनिक भी झूठ न होगा . पहले वेश्यावृत्ति का शब्द मात्र महिलाओं के लिए प्रयोग किया जाता था , लेकिन अब जब देश विकाशसील है तो बदलाव आना तो लाजिमी हैं ना. अगर देखा जाये तो वेश्या मतलब वो जिन्हें पुरुष अपने वासना पूर्ति के लिए प्रयोग करते थें , इन्हे एक खिलौना के माफिक प्रयोग किया जाता था, वाशना शांत होने के बाद इन्हे पैसे देकर यथा स्थिति पर छोड़ दिया जाता था . पुरुष वर्ग महिलाओं प्रति आकर्षित होते थे और ये अपनी वासना पूर्ति के लिए जिन्हें वेश्या कहते हैं, इनके माध्यम से अपनी शारीरिक भूख शांत करते थे . लेकिन अब समय बदल गया है पश्चिम की आधी ऐसी आई वहां की प्रगतिवादी महिलाओं ने कहा कि कि ये क्या बात हुयी , पुरुष जब चाहें अपनी वासना मिटा लें परन्तु महिलाएं कहाँ जाये ???? तत्पश्चात उदय हुआ है जिगोलो या पुरुष वेश्याओं का . आज ये हमारें यहाँ खासकर बड़े शहरों में इनकी संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही . साथ ही इनकी मांग भी दिन व दिन बढती ही जा रही है . जिगोलो का उपयोग महिलाएं अपनी वासना पूर्