मुक्तक ताप से तप से कभी- राग से रस से कभी- जीवन विसंगतियों भरा - राम से रब से कभी॥ तुम मिलो जिंदगी दीप वन जल उठे । अश्रु की धार में प्यार भी पल उठे । भावना के सलोने मधुर दे बता- तुम मिलो जिंदगी गीत में ढल उठे॥ तूलिका सी वरौनी सजाये हुए। भेद भरे नैन सपने संजोय हुए। कोर काजर ह्रदय पर करे घात यों- जैसे मुनि मेनका में समाये हुए॥ लाल अंधेरो में मोती सजाये हुए। नासिका सुकू सी गर्दन झुकाए हुए। चैन छीना है मादक कपोलो ने यों- जैसे राधा ठगी दृग लगाये हुए॥ डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'