नव पिंगल पराग शतदल, आशा विराग अभिनन्दन। नीरवते कारा तोड़ो, सुन मानस स्वर का क्रंदन॥ माया दिनकर आच्छादित, अन्तस अवशेष तपोवन। मानो निर्धन काया का , अनुसरण अधीर प्रलोभन॥ ये उल्लास मौन आसक्ति भ्रम जीवन दीन अधीर। सुख वैभव प्रकृति त्यागे, मन चाहे कृतिमय नीर॥ डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल "राही"