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Showing posts from October 8, 2012

बैगा समाज की अनूठी प्रथा, पंचायत तय करती है अच्छे कर्मो का फैसला

   बिलासपुर. विशेष पिछड़ी जनजाति माने जाने वाले बैगा आदिवासियों में मनुष्य के कर्मो का जो महत्व है, वह शायद गांव और शहरों में भी नहीं है। बैगा आदिवासियों में सिर्फ उन्हीं लोगों को पितर माना जाता है, जिन्होंने जीवित रहते हुए अच्छे कर्म किए हों। ऐसा भी नहीं है कि संबंधित परिवार ही अच्छे कर्मो की तस्दीक करे। यह फैसला बैगा पंचायत पर छोड़ा जाता है। किसी की मृत्यु के तत्काल बाद पंचायत तय करती है कि उसे पितरों में शामिल किया जाए या नहीं। बैगा आदिवासियों में सदियों से मृतक संस्कारों को लेकर कई अलग और अनूठी मान्यताएं प्रचलित हैं। बैगा परिवार में जब भी किसी सदस्य की मृत्यु होती है, तब उसे अन्य समाज की तरह श्मशानघाट में अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जाता है। इसी समय परिजनों व समाज के प्रमुख लोगों की मौजूदगी में पंचायत बैठती है। इसमें मृत व्यक्ति के अच्छे कर्मो को लेकर लोगों से राय ली जाती है। इसके बाद आगामी वर्ष में उसे पितृ पक्ष में पितरों में शामिल करने को लेकर निर्णय लिया जात

चाय वाले की इस बेटी ने किया कमाल, कायम की अनोखी मिसाल

   लुधियाना।  कुछ भी आसान नहीं था। लुधियाना से रोजाना डीएवी कॉलेज जालंधर जाना। पैसे नहीं होते फिर भी स्टूडेंट बस पास के लिए हर महीने 1500 रुपये खर्च करने पड़ते। आठ बजे कॉलेज पहुंचने के लिए सुबह पौने 6 बजे हर हाल में घर से निकलती।  उस पर मुश्किल यह कि रोडवेज बस वाले स्टूडेंट्स को देखकर बस भी नहीं रोकते हैं, फिर भी किसी तरह भाग कर बस पकड़ती। रास्ते में कभी-कभार मनचले लड़कों से भी दो-चार होना पड़ता था।    कॉलेज पहुंचने में लगने वाला करीब दो घंटे का यह समय किसी पहाड़ की चढ़ाई चढ़ने से कम नहीं था। लेकिन जब अपने और पापा के सपने को सोचती, तो खुद-ब-खुद सब से लड़ने का हौसला आ जाता। और इसी हौसले से यह सफलता हासिल कर पाई। यह कहानी है नेहा शर्मा की। बाबा फरीद यूनिवर्सिटी से संबंधित डीएवी इंस्टीट्यूट ऑफ फिजियोथैरेपी एंड रिहेबलिटेशन जालंधर से बैचलर्स ऑफ फिजियोथैरेपी कर रहीं लुधियाना की इस बेटी ने तीसरी बार भी पंजाब में टॉप किया है। उसने साबित कर दिखाया कि अगर कुछ ठान लिया तो कोई भी मुश्किल र