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Showing posts from April 28, 2009

"कबीरा खड़ा बाज़ार में" का उद्देश्य एवं अर्थ ....

कबीरा शब्द अपने आप में एक व्यापक अर्थ समेटे हुए है । मेरे ब्लॉग का नाम कबीरा खड़ा बाज़ार में रखने के पिछे एक बड़ा उद्देश्य है। "कबीर " मात्र एक संत का नाम नही , यह अपने आप में एक बड़ी अवधारणा है । आपका नाम जो भी हो, आप अपने आप में एक पुरी प्रक्रिया हैं। कनिष्क , यानि मैं , एक पुरी प्रक्रिया है , किसी को किसी जैसा बनने के लिए उस पुरी प्रक्रिया से गुजरना होगा। ... "कबीरा " शब्द मात्र से हीं जो छवि उभरती है वह किसी आन्दोलन को प्रतिबिंबित करती है । "कबीर" ने जीवन पर्यंत तात्कालिक सामाजिक बुराइयों पे बड़े सुलझे ढंग से प्रहार किया। कबीर स्वयं में एक क्रांति थे । जाती धर्म और वर्ग से ऊपर उठकर उन्होंने सामान रूप से सभी पर कटाक्ष किया। कबीर "संचार "या आप जनसंचार कहें , की आत्मा हैं। "जनसंचार का काम सूचना देना "बड़ी हीं तुक्ष मानसिकता को दर्शाता है । "सुचना देना "और "ज्ञान देना " दोनों में बड़ा हीं अन्तर है। परन्तु आज हमारा बौधिक स्तर इतना निक्रिष्ट हो गया है की ये फर्क समझ में नही आता। समझ में जिसे आता भी है तो वो इसके व्यापक

ग़ज़ल

आइने मे देखा तो, मुझे मेरा चेहरा अजनबी सा लगा labon पर हसी थी, आखो मे मुझे पानी सालगा teri हसरतो को हमने अपना मकसद बना liyaa आज मुझे अपनी हस्ति पर, तेरा वजुद हावी सा लगा एक वक़्त था, जब आप दुर रह के भी करीब थी कुछ पल का ये फ़सला भी बरसो का सा लगा jinke सवालो को , हम कभी समझ ही ना पाये huaa पेमाना, हमेशा मुझको खाली सा lagaa ye क्यु आप लेकर आ गये, प्यार का नूर मेरी राहो में रोशनी का हर पल मुझे, अन्धेरे की कहानी सा लगा

खुशबू बिखेरती..बेटियां...

सारांश .... घर भर को जन्नत बनाती है बेटियाँ॥! अपनी तब्बुसम से इसे सजाती है बेटियाँ॥ ! पिघलती है अश्क बनके ,माँ के दर्द से॥! रोते हुए भी बाबुल को हंसाती है बेटियाँ॥! सुबह की अजान सी प्यारी लगे॥, मन्दिर के दिए की बाती है बेटियाँ॥! सहती है दुनिया के सारे ग़म, फ़िर भी सभी रिश्ते .निभाती है बेटियाँ...! बेटे देते है माँ बाप को .आंसू, उन आंसुओं को सह्जेती है .बेटियाँ...! फूल सी बिखेरती है चारों और खुशबू, फ़िर .भी न जाने क्यूँ जलाई जाती है बेटियाँ... आगे यहाँ

Loksangharsha: होम तन हो गया ..

नीड़ निर्माङ में होम तन हो गया । कर्म की साध पर रोम बन हो गया । एक आंधी बसेरा उडा ले चली - रक्त आंसू बने मोम तन हो गया ॥ पाप का हो शमन चाहते ही नही । कंस का हो दमन चाहते ही नही । कुछ सभाओ में दुस्शासनो ने की ठसक - द्रोपती का तन वसन चाहते ही नही ॥ सर्जनाये सुधर नही होती । वंदनाएं अमर नही होती । आप आते न मेरे सपनो में - कल्पनाएँ मधुर नही होती ॥ नम के तारो से बिखरी हुई जिंदगी । फूल कलियों सी महकी हुई जिंदगी भर नजर देखकर मुङके वो चल दिए - जाम खाली खनकती हुई जिंदगी ॥ डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ' राही '

सजन तेरी याद आती है,

जब जब आती रेल सजन तेरी याद आती है। जगाती रात भर मुझको तन्हाई तडपातीहै॥ छुप-छुप देखू खिड़की से शायद आते होगे। मोबाईल की घंटी बजाते ही समय बताते होगे॥ ऐसी बेदर्दी प्रीत तुम्हारी अब कब आओगे। बता दो पक्का आना या बहाना बनाओ गे॥ कसम से यार तेरे सपने यूं ही रुलाते है॥ जब जब आती रेल सजन तेरी याद आती है। जगाती रात भर मुझको तन्हाई तडपातीहै॥ हर तरफ़ चेहरा तुम्हारा बिन दर्पण देखे देखती हूँ। तेरी तस्वीर लेके यूं ही भेटती हूँ॥ अब बना दिया पागल दीवानी तो पहले से थी। किया जो प्रेम तुमसे क्या कोई गलती मई की॥ झपटी नही आँखे हमारी सोने को यूं ही तरसाती है। जब जब आती रेल सजन तेरी याद आती है। जगाती रात भर मुझको तन्हाई तडपातीहै॥ है पक्का भरोषा जल्द ही पास आओगे। प्यार का कंगन मेरे हाथो को पिन्हाओ गे॥ गुनगुनाओ गे प्यार का गीत हर खुशिया लूताओ गे॥ बसाओ गे दिल में मुझको कुछ ख़ास बताओ गे॥ रूकते नही आंसू यार सूनी बिंदिया बताती है॥ जब जब आती रेल सजन तेरी याद आती है। जगाती रात भर मुझको तन्हाई तडपातीहै॥

ग़ज़ल-दिल की लगी

दिल की लगी इस दिल्लगी पर क्यों न मर जाए कोई , या खुदा इस दिल्लगी पर ,क्या न कर जाए कोई ऐ जिंदगी ! तू ही बता , ये राज कैसा राज है , दिल मैं बस बैठा मगर ना दिल मैं बस पाये कोई दिल के करीव है वही जो आज हमसे दूर है, भूलना चाहें जिसे क्यों याद फ़िर आए कोई । दर्द तो दिल मैं है पर मीठी सी है तासीर भी , इस दर्दे दिल की दास्ताँ का क्या बयान गाये कोई । दिल की लगी की ये लगी मीठी तो है प्यारी भी है , श्याम मीठी छुरी के क्या ज़ख्म भर पाये कोई ।।

भगवन को अवतार लेना है ..हेल्प प्लीज़

भगवान् के अवतरण का समय आ गया है । भगवान् अब अवतार लेने की तयारी में है ....उन्होंने नारद को बुलावा भेजा है। नारद , भगवान् के सम्मुख बैठ कर .... "हे प्रभो " आपका विधान कलयुग में प्रभावी नही रहा , कल्कि अवतार की योजना पर अमल सम्भव नही ..क्यों की अपने जिस स्वरुप की चर्चा की है ...घोडे पे आसीनहोकर आप विचरण नही कर सकते , टोल टैक्सका जमाना आ गया है ..घोडे की पुँछ उठाकर कोई नंबर कैसे देख पाएगा परन्तु नारद ! ब्रह्मण कुल में जन्म लेने पर क्या , कहना है तुम्हारा ..... "एक ब्रह्मान के घर , उत्तर प्रदेश में पैदा होना ...धिक्कार है प्रभु .... वहां तो ब्राह्मणों को इज्ज़त खरीदिनी पड़ रही है ॥ और आप अच्छे युगनिर्माता हो सकते हैं , पर अच्छे मार्केट एजेंट , कदापि नही..... "तो तुम्ही बताओ नारद ! इस विषम परिस्थिति का सामना कैसे किया जाए ॥?" कहो तो किसी अन्य भू - भाग पर अवतार लेता हूँ ..परन्तु अन्य जगह की यथास्थिति का पता लगाओ ......." कई दिनों के धरती भ्रमण के बाद वापस विष्णुलोक पहुँचते हैं... (यह संवाद जारी रहेगा ..अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें )