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Showing posts from July 22, 2009
सारांश यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ गीतिका आचार्य संजीव 'सलिल' आते देखा खुदी को जब खुदा ही जाता रहा. गयी दौलत पास से क्या, दोस्त ही जाता रहा. दर्दे-दिल का ज़िक्र क्यों हो?, बात हो बेबात क्यों? जब ये सोचा बात का सब मजा ही जाता रहा. ठोकरें हैं राह का सच, पूछ लो पैरों से तुम. मिली सफरी तो सफर का स्वाद ही जाता रहा. चाँद को जब तक न देखा चाँदनी की चाह की. शमा से मिल शलभ का अरमान ही जाता रहा 'सलिल' ने मझधार में कश्ती को तैराया सदा. किनारों पर डूबकर सम्मान ही जाता रहा.. ***********************************

राखी सावंत जी को ऐसा नही करना चाहिए था..

वेबदुनिया में लिखा है की राखी जी ने मनमोहन तिवारी को खरी खोटी सुनायी यह तो ठीक है । तिवारी जी ने राखी जी से कोई बात छिपाई होगी । लेकिन राखी जी को उनके माँ बाप के बारे में नही बोलना चाहिया था। हर एक माँ चाहती है । और सोचती है की मेरी बहू आएगी तो मई उससे पैर दबवाऊ गी॥ ये करवाऊ गी ओ करवाऊ गी॥ इस लिए राखी जी बिल्कुल ग़लत है अगर आप ने तिवारी जी के माँ बाप के बारे में बोला है। ओ आप की मर्ज़ी शादी करना या न करना॥

ये देश है मेरा...?

अपनी पिछली पोस्ट में मैंने लिखा था की हमें बेवजह विदेशियों के लिए पलकें पावडे नहीं बिछाना चाहिए !और लो उन्होंने साबित भी कर दिया..!एक विदेशी एयर लाइन ने पूर्व राष्ट्रपति के साथ जो सलूक किया वो हर भारतीय के लिए शर्मनाक है !ऊपर से तुर्रा ये की हम..सब.... से बराबरी का व्यहवार करते है,तो क्या जनाब ओबामा के साथ भी ऐसे,लेकिन अफ़सोस तब नहीं !क्योंकि भारतियों को अपमान सहने की आदत सी हो गई है ना !पहले तो वे अपने अपने देशों में अपमानित करते थे ,अब हमारे देश में भी वे हमारा अपमान करेंगे..!क्या एयर लाइन को विशिष्ट अतिथियों की गाइड लाइन का पता नही?क्या वे पूर्व राष्ट्रपति को जानते नही?क्या सुरक्षा के नाम पर जूते उतरवाए जाते है?साफ़ है की उनका मकसद अपमानित करना ही था...!और हम है की रत लगा राखी है...पधारो म्हारे देश ....!आओ हमारा अपमान करो,बीमारियाँ .फैलाओ...हमें बुरा नहीं लगता..! हमारे देश के नेता बहुत उदार है ,उनकी मोटी चमडी पर कुछ असर नहीं होता..!इसीलिए कभी कुछ नहीं होता !कभी जोर्ज फर्नांडिस तो कभी प्रणब मुखर्जी को जांच के नाम पर कपड़े उतारने पड़ते है..!कभी भी विदेशी नेताओं से हम ऐसा करने की हिमाकत

बाल सखा..

बाल सखा क्यो भूल गए तुम ॥ हमें और बचपन का खेल॥ साथ हमेसा मेरे रहते थे॥ था दोनों का अनोखा मेल॥ खेल कूद करते रहते थे॥ होती रहती चुल बुल बातें॥ मिल बात कर खाते थे। बात बिताती थी राते॥ किस्मत ने ऐसा करवट बदला॥ जो चले गए तुम कुछ दूर॥ तुमसे मिलाने तेरे घर पहुचा॥ बोले तुम्हे भूल गए हुजुर॥ बीते बातें ताजा करने को॥ मैंने छेदी पुराणी यादे॥ अधिक समय अभी नही है॥ फ़िर करना कभी मुलाकाते॥ आशा की ठठरी खुल गई॥ मई ममता दियुआ वही उडेर॥ बाल सखा क्यो भूल गए तुम ॥ हमें और बचपन का खेल॥

जीवन से खिलवाड़ करके॥

आज मेरा दिल फ़िर रोया है॥ बीते बातें याद करके॥ वह ठुनक के मुझसे चली गई है॥ मीठा मीठा प्यार करके ॥ उसके इशारे पे चढाते थे॥ गगन की ऊंची चोटी पर॥ मगन जिया उसका रहता था॥ मै मुग्ध था उसकी ठिठोली पर॥ शायद रिश्ता तोड़ गई वह ॥ जीवन से खिलवाड़ करके॥