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Showing posts from June 9, 2010

राजा ने नौकरी की, वेतन लिया एक रुपया

राजेंद्र ठाकुर/पवन अर्की (सोलन). अर्की के राजा राजेंद्र सिंह का सोमवार देर शाम आईजीएमसी शिमला में निधन हो गया। वह 82 वर्ष के थे। उनके निधन के साथ ही अर्की रियासत में रजवाड़ा शाही की अंतिम कड़ी भी इतिहास बन गई है। उनके निधन से अर्की में शोक की लहर है। उनका अंतिम संस्कार मंगलवार को अर्की राजमहल के पास किया गया। राजा राजेंद्र सिंह जितने अपनी प्रजा के प्यारे थे, आजादी के बाद केंद्र सरकार के भी वे उतने ही विश्वासपात्र थे। जब रियासतों का विलीनीकरण और प्रीवी पर्स खत्म हो जाने से अधिकांश राजा या तो शोक में डूबे थे या अकड़ से उबर नहीं पाए थे, तब अर्की राज्य के इस अंतिम राजा ने देश भक्ति का परिचय दिया। तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने भी उन पर खूब भरोसा किया। 1962 में भारत पाक युद्ध के दौरान केंद्र सरकार ने उन्हें हिमाचल की आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी थी। केंद्रीय गृह मंत्री लाल बहादुर शास्त्री के निर्देश पर उन्होंने 6 दिसंबर 1962 को हिमाचल होमगार्ड की स्थापना की। शास्त्री जी ने उन्हें हिमाचल होमगार्ड का कमांडेंट जनरल और सिविल डिफेंस का डायरेक्टर बनाया। उनका पद सेना के

लो क सं घ र्ष !: आर्थिक जीवन और अहिंसा -2

पिछली तीन चार शताब्दियों से धीरे -धीरे सारी विश्व आर्थिक व्यवस्था इस स्वतः चालित तथाकथित ‘आदर्श,‘ व्यवस्था के तहत संचालित हो रही है। कहा जा सकता है कि यदि ये दावे सचमुच सही हैं तो यह व्यवस्था अहिंसक समाज के मूल्यों पर भी सटीक बैठती नजर आती है। सिद्धांतों तथा ऐतिहासिक तथ्यों की कसौटी पर ये दावे कैसे और कितने खरे बैठते हैं यहाँ हम इस सवाल पर संक्षेप में विचार करेंगे। तथ्यों और इतिहास के आईने में झँाककर देखने पर बाजार व्यवस्था का यह तथाकथित अहिंसक सामाजिक मूल्यों अर्थात सामाजिक व्यक्ति के स्वतंत्र स्वैच्छिक निर्णय करने और उन्हें लागू करने की व्यवस्था पेश करने वाला आदशीकृत चित्र बालू की दीवार पर खड़ा यथार्थ के सर्वथा विपरीत नजर आएगा। अनेक वैकल्पिक और उच्च सामाजिक मूल्यों के प्रणेताओं ने इस काल्पानिक आदर्श व्यवस्था का सही चेहरा ही नहीं दिखाया है, सर्व-सम्मत मूल्यों मान्यताओं पर आधारित अहिंसा, समता, स्वतंत्रता और भाईचारे की नींव पर खड़ी वैकल्पिक व्यवस्थाओं के प्रारूप भी पेश किए हैं। बाजार व्यवस्था ने सभी इन्सानों को मात्र ‘आर्थिक‘ मानव केवल निजी लाभ-लोभ, लालच की असीम चाहत से प्रेरित माना हैं।