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Showing posts from February 14, 2009
...मारा था जूता " अरुंधती रॉय " को .................... । मैं हूँ युवा का " मीडिया प्रभारी... " १। मुझे नापसंद हैं ये अरुंधती सरीखे लोग जिसे ये नही पता की उनकी पेन और लेखनी बौद्धिकता का परिचयक न होकर ..."pen prostitution " है.... २ मूझे नापसंद हैं या यूँ कहें ..कि "युवा "{ Y outh U nity for V ibrant A ction } को नापसंद हैं वो लोग जो देश हित के खिलाफ लिखते या बोलते हैं।३। उन्हें अधिकार नही है। कहने का कि '"काश्मीर" को पाकिस्तान को दे देना चाहिए। एसे लोग ये दलील देते हैं कि, चूँकि काश्मीर एक मुस्लिम बहुल राज्य है , तो उसको पाकिस्तान को उसी अधर पर दिया जन चाहिए जैसे अन्य राज्य आजादी के बाद बंटवारें में गए थे ... मैं पूछता हूँ वही सवाल जो सालों पहले चन्द्रसेखर जी ने प्रदंमंत्री रहते हुआ पूछा था कि, गर कश्मीर पाकिस्तान में गया तो देश में बचे बाकि १५% मुस्लिमों कि सुरक्षा कि जिम्मेदारी क्या अरुंधती लेगी.....३। जो लोग औरतों के आज़ादी का बहाना लेकर ये साबित करने कि कोशिश कर रहे हैं॥कि वैलेंटाइन डे को इसी रूप में मनाया जाना चाहिए , उन्हें ये

जूते खाने वालों की सूची में अरुंधती रोय का नाम शामिल

जूते की तीसरी शिकार बनी "अरुंधती राय". और चल गया सैंडल ,इस बार निशाना बनी अरुंधती रॉय, विश्व विख्यात लेखिका और बुकर प्राइज़ से सम्मानित अरुंधती रॉय।कल दिल्ली विश्वविद्यालय के आर्ट्स फैकल्टी में AISA द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान अरुंधती राय को जूते खाने वालों की पंक्ति में शुमार होना पड़ा।शुक्रवार सुबह जब अरुंधती राय दू पहुँची तो उन्हें कार्यक्रम में दिक्कतों का सामना करना पड़ा।" युवा " नाम से बैनर लिए कुछ विद्यार्थिओं ने उनका जमकर विरोध किया और नारेबाजी की। YUVA- yoth unity for vibrant action। का विरोध मुख्यतः पिंक चड्डी के खिलाफ था। उन्होंने अरुंधती रॉय के उस बयान का पुरजोर खंडन किया जिसमे उन्होनो कहा था की कश्मीर , पाकिस्तान को दे देना चाहिए। अजमल कसब के मामले पे उनकी की गई टिपण्णी से भी युवा के कार्यकर्ता नाराज़ दिखे। उन्होंने विवेकानान्द मूर्ति के सामने ऐसे देशद्रोही का बैठना गंवारा नही था। ख़बर ये भी है की उस जूते की नीलामी की जायेगी।प्रस्तुत है इस link पर जारी ख़बर ...... http://www।expressindia.com/latest-news/du-battleground-for-freedom-vs-culture/423

suicide

शब्दों का झुंड बढ़ता चला जा रहा आत्महत्या करने दुःख था ..की क्यूं बदल जाते है अर्थ शब्दों के प्रयोग करने बाले के अनुसार , परिस्थितियों, विचारधाराओं और मान्यताओं के अनुरूप भी, शब्द क्यों खो देते है अपना अर्थ और अस्तित्व भी कभी कभी. कोई क्यूँ नही लिखता शब्दों को उनके वास्तविक रूप में उनकी अपनी प्रकिर्ति और पविर्ति के अनुरूप. हम करते है इनका दुरूपयोग अपनी भड़ास और दुर्भावना प्रदर्शित करने के लिए साहित्य में द्वि अर्थिभाव से. www. pathiik.blogspot.com

सलीम खान जी का एक पैगाम देश के नाम

स्वच्छ संदेश: हिन्दोस्तान की आवाज़ जी का एक अच्छा सन्देश समाज के नाम व्योम जी, ये सच है कि लोग जब बहुत थके होते हैं, जब परेशां होते है, चिंता में होते हैं तो उन्हें राहत की तरफ़ ले जाने वाले किसी भी टास्क की तरफ़ झुकाव होता ही है आपकी इस बात से थोड़ा सा मैं भी सहमत हूँ कि मंदी में लोग ज़्यादा से ज़्यादा सेक्स करना पसंद करेंगे या सेक्स कि तरफ़ झुकेंगे सही बात है टेंशन में रिलैक्स पाने की इन्सान कोशिश करता है और कुछ ना कुछ करता ही है मंदी क्या किसी भी मुसीबत में लोग, मुसीबत से उबरने की कोशिश करेंगे ही ओ. के., लेकिन जनाब ये हिन्दुस्तान का दर्द है यहाँ आपके ये प्रोफेसर साहब क्या कर रहे हैं? ये तो अमेराकां सर्वे की सी बातें हैं और हमारे हिन्दुस्तान में तो मंदी में ही नहीं रोज़ ही, बल्कि मैं कहता हूँ रोज़ ही लोग दिन भर मेहनत करके रात को अपनी थकान मिटाते हैं आप को पता है मज़दूर दिन भर हांड-तोड़ मेहनत करके रात को क्या करता है? और किसान दिन भर अपने खेतों में जम कर अपनी ज़मीन में मेहनत करके रात को क्या करता है? ओहो ! मैं तो ये भूल गया दोष हमारा ही है, हमारे अखबार वाले, टी.वी. वाले दिन रात ऐस

मंदी मे तेजी से बढता सेक्स

प ूरी दुनिया जहां एक ओर मंदी की मार से जूझ रही है तो वहीं एक पक्ष ऐसा भी है जहां मंदी की सुनामी का कोई असर नहीं पड़ रहा है। जी हां मंदी पर सेक्स पूरी तरह से हावी है। जानकार तो यहां तक कहते हैं कि दुनिया में आर्थिक मंदी जितनी बढ़ेगी, सेक्स में भी उतना ही इजाफा होगा। मंदी की मार से बौखलाए पुरुष अपना तनाव दूर भगाने के लिए ज्यादा से ज्यादा सेक्स करना पसंद करते हैं। प्रोफेसर हेलेन फिशर का मानना है कि, आर्थिक मंदी के चलते लोगों में डर और तनाव इतना फैल जाता है कि उनके दिमाग में डोपामाइन नामक केमिकल की मात्रा में बढ़ने लगती है। इस केमिकल्स की वजह से सेक्स की तरफ लोग अधिक खिंचे चले जाते हैं। लोग तनाव को दूर भगाने के लिए आपसी रिश्तों में ज्यादा से ज्यादा समय सेक्स को दे कर तनाव भरे वातावरण से निकलना चाहते हैं। तनाव में सेक्स से फायदा.. आर्थिक मंदी से जूझ रहे लोग इतना तनावग्रस्त हो जाते हैं कि वे सेक्स में अपना समय ज्यादा देकर इस तनाव से दूर रहते हैं। मंदी से जूझ रहे लोगों में सेक्स एक दवा की तरह काम करती है। इससे तनाव तो कम होता ही है साथ ही मंदी के दौर में इससे सस्ता मनोरंजन का साधन दूसरा कोई