सलीम अख्तर सिद्दीक़ी प्रसिद्व पत्रकार स्वर्गीय उदयन षर्मा के जन्म दिन 11 जौलाई को दिल्ली के कांस्टीट्यूषन कल्ब के डिप्टी स्पीकर हॉल में हुई एक परिचर्चा 'लोकसभा के चुनाव और मीडिया को सबक' में खबर में मिलावट करने वालों के खिलाफ कानून बनाने का शिगूफा 'आउटलुक' के सम्पादक नीलाभ ने छोड़ा है। इस पर न्यूज पोर्टलों पर बहस हो रही है। इस पर बहस करना बेमानी और बेमतलब है। हैरत तो यह है कि खबरों में मिलावट करने वाले और टीआरपी और प्रसार संख्या बढ़ाने के लिए कुछ भी छापने के लिए मजबूर लोग खबरों में मिलावट के खिलाफ कानून बनाने की बात कर रहे हैं। इस देश में किसी भी चीज में मिलावट के लिए कानून हैं। क्या मिलावट रुकी ? खबर में मिलावट करने वाले ही तो अन्य चीजों में मिलावट के खिलाफ दिन रात चीख्ते रहते हैं। लेकिन उनकी सुनता कौन है ? सुनें भी क्यों जब वह ख्ुद मिलावटखोर हैं। कपिल सिब्बल ने शायद गलत नहीं कहा था कि मीडिया के छापने या नहीं छापने से कोई फर्क नहीं पड़ता। वाकई अब खबरों के छपने से आसमान नहीं टूट पड़ता। अक्सर अखबार और न्यूज चैनल छापते और दिखते रहते हैं कि किस चीज में क्या और कितनी मात्रा में