संवैधानिक मिथ्या या राजनैतिक सत्य अनादिकाल से ही आदर एवं सत्य, न्याय एवं न्याय करने वाले व्यक्तियों के साथ जुड़ा रहा है जिसके कारण न्याय प्रक्रिया की पर्याप्त जाँच नहीं की जा सकी है। मानव समाज के विकास में प्राचीन काल से वर्तमान प्रजातांत्रिक युग तक यह धारणा बनी रही है कि न्यायिक शक्ति की उत्पत्ति दैवीय है। जैसे-जैसे आधुनिक संवैधानिक व्यवस्था नवीन सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक सत्य को ध्यान में रखते हुए अपनायी गई, न्याय पालिका राज्य के एक पृथक अंग के रूप में उभरकर सामने आई। यूरोप में शक्ति पृथक्कीकरण के सिद्धांत को संवैधानिक मान्यता प्रदान की गई। सत्रहवीं सदी में इंग्लैण्ड में व्यापारिक एवं वाणिज्यिक वर्गों ने राजा की निरंकुशता को चुनौती दी। गृह युद्ध के फलस्वरूप राजा को फाँसी दी गई ताकि इंग्लैण्ड में संसद की स्वच्छता को स्थापित किया जा सके। मध्यम वर्ग ने संसद के अन्दर तथा बाहर अपनी उपस्थिति एक प्रभावी वर्ग के रूप में दर्ज की। 1789 की फ्रांसीसी क्रांति के पश्चात फ्रांस में भी सत्ता का हस्तान्तरण राजतंत्र से व्यापारिक वर्ग को किया गया। फ्रांसीसी क्रांति का नेतृत्व मध्यम वर्ग ने किया। इसमे