संजय सेन सागर की हिंद युग्म द्वारा पुरुस्कृत कविता ''एक मधुशाला मेरी भी'' देश की गिरती साख पर, बेगुनाहों की ख़ाक पर अब एक आंसू धारा मेरी भी, राजनीतिज्ञों की प्यार बुझाने अब एक मधुशाला मेरी भी भूंखे की बासी रोटी पर, नारी की आधी धोती पर एक सरकार बनाने की, एक मनोकामना मेरी भी रोटी और कपडे का गम भुलाने अब एक मधुशाला मेरी भी आतंकवाद की जीत पर, मासूमों की चीख पर अब एक सहानभूति मेरी भी और आतंकवाद का जश्न मनाने अब एक मधुशाला मेरी भी नेता की खादी से लेकर, मयखाने की साखी से लेकर एक हिन्दोस्तां बचाने की, एक जुस्तजूँ मेरी भी नेता,मय और खादी को एक कराने अब एक मधुशाला मेरी भी! रहमान और राम से लेकर, बाइबिल और कुरान से लेकर सबको एक कराने की,एक ख्वाहिश मेरी भी! हिन्दू-मुस्लिम को आपस मे लड़ाने अब एक मधुशाला मेरी भी! हिंदी की ताकत से लेकर, अंग्रेजी की कूवत से लेकर एक रचना मेरी भी मासूम दिलों को जेहादी बनाने अब एक मधुशाला मेरी भी जूलियट के प्यार पर, हीर के इकरार पर अब एक दीवानगी मेरी भी, नाकाम आशिकों का गम मिटाने अब एक मधुशाला मेरी भी नर्मदा के कंचन जल से, भारत के पावन थल से एक संस्कृति बन