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Showing posts from November 16, 2009

लो क सं घ र्ष !: समय की सबसे बड़ी गाली-1

मैं एक भारतीय हूँ और हर भारतीय की तरह मुझे कुछ मूल्य घुट्टी में मिले हैं। मसलन परम्परा, देश और देश की सेना पर गर्व करना। हालाँकि ये समझना मुश्किल है कि हमारी परम्परा क्या है और देश का मतलब टाटा, अम्बानी और मित्तल है या फिर जनता; जिसमें किसान भी हैं और दूर दराज के आदिवासी भी; इसमें क्या वाकई बेरोजगार भी शामिल होते हैं? पर छोड़िए ना मैं देश पर गर्व करता हूँ और मानता हूँ कि सीमाओं की रक्षा करने वाले हमारे जवान कठिन परिस्थितियों में मौत का सामना करते हैं। अब जबकि उन पर गर्व करना कर्तव्य ही नहीं धर्म भी है तो हर भारतीय की तरह मैं भी उन पर गर्व करना चाहता हूँ। पर क्यों मनोरमा की लाश आँखांे के सामने आ जाती है। क्यों वस्त्रहीन दौड़ती हुई महिलाओं की दर्द भरे गुस्से की चीख दिल को चीर देती है ‘‘आओ! गाड़ दो अपना तिरंगा हमारी छाती पर।‘’ मनोरमा, याद है ना आपको, जुलाई 2004 में उनकी लाश झाड़ियों में पड़ी मिली। सात दिनों पहले सेना के जवानों ने उन्हें आतंकियों का सहयोगी होने के संदेह में, बिना किसी लिखा-पढ़ी या वारन्ट के घर से अगवा कर लिया था। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के अनुसार उनके शरीर पर भयंकर शारीरिक यातना