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Showing posts from June 8, 2010

लो क सं घ र्ष !: आर्थिक जीवन और अहिंसा -1

मानव समाज को और उसके अभिन्न अंग मानव मात्र को अपनी जिन्दगी को जीने की प्रक्रिया में अनेक प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं की जरूरत होती है। आधुनिक विनिमय अर्थव्यस्थाओं में इन वस्तुओं को पाने के लिए नियमित रूप से और आमतौर पर बढ़ती हुई मात्रा में मौद्रिक आय की जरूरत होती है। किन्तु मौद्रिक आय अपने आप में समाज और व्यक्ति की जरूरतें पूरी नहीं कर सकती हैं। इस मौद्रिक राशि के साथ-साथ विभिन्न प्रकार की, और आम तौर पर बढ़ती हुई मात्रा में वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन और उचित दामों पर उनका वितरण होेना जरूरी है, अन्यथा अर्थव्यस्था का सबको जीवन-यापन के साधन उपलब्ध करानेे का मकसद पूरा नहीं हो पाएगा। सामाजिक श्रम-विभाजन के कारण किसी खास वस्तु या सेवा के उत्पादन में लगे व्यक्ति को भी अपनी अनेक प्रकार की अन्य वस्तुओं और सेवाओं की जरूरतें पूरी होने का आश्वासन रहता हैं। यहाँ तक कि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के चलते सुदूर देशों में उत्पादित वस्तुएँ और सेवाएँ भी दूर-दूर के देशों में उपलब्ध हो जाती हैं। संक्षेप में परस्पर सम्बंधित आर्थिक-सामाजिक प्रक्रियाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि मनुष्य जैसे सामाजिक प्राणी

अब भी अधूरी है शहीद बिरसा मुंडा का सपना

9 जून, शहादत दिवस पर विशेष अंग्रेजों की शोषण नीति और असह्म परतंत्रता से भारत वर्ष को मुक्त कराने में अनेक महपुरूषों ने अपनी शक्ति और सामथ्र्य के अनुसार योगदान दिया. इन्हीं महापुरूषों की कड़ी का नाम है - 'भगवान बिरसा मुंडा'. 'अबुआ: दिशोम रे अबुआ: राज' अर्थात हमारे देश में हमारा शासन का नारा देकर भारत वर्ष के छोटानागपुर क्षेत्र के आदिवासी नेता भगवान बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों की हुकुमत के सामने कभी घुटने नहीं टेके, सर नहीं झुकाया बल्कि जल, जंगल और जमीन के हक के लिए अंग्रेजी के खिलाफ 'उलगुलान' अर्थात क्रांति का आह्वान किया. बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1874 को चालकद ग्राम में हुआ. बिरसा मुंडा का पैतृक गांव उलिहातु था. इनके जन्म स्थान को लेकर यद्यपि इतिहासकारों में मतभेद है कि उनका जन्म स्थान चालकद है या उलिहातु. बिरसा का बचपन अपने दादा के गांव चालकद में ही बीता. सन 1886 ई0 से जर्मन ईसाई मिशन द्वारा संचालित चाईबासा के एक उच्च विद्यालय में बिरसा दाउद के नाम से दाखिल कराये गए क्योंकि इनके माता-पिता ने ईसाई धर्म अपना लिया था. बिरसा मुंडा को अपने भूमि, संस्कृति पर गहरा लग

लो क सं घ र्ष !: तमसो मा ज्योर्तिगमय

बिजली न होने से जो समस्यायें होती हैं, उनकी सूची हम आप बैठकर किसी भी समय बना सकते हैं, परन्तु एक समस्या मेरे संज्ञान में अभी तक नहीं थी, वह यह कि कुछ ऐसे कुआंरे हैं जिनके घर में भी अंधेरा है और जीवन में भी बिजली न होने के कारण इन बेचारों की शादी भी नहीं हो पा रही है। मैं जो लिख रहा हूँ आप इसे गप्प न समझिये। खबर जो आई है उसे मैं अक्षरशः नकल किये देता हूॅ :- -अधिवक्ता निर्मल सिंह ठीक ठाक परिवार के हैं। देखने सुनने में भी ठीक हैं और कमाते भी अच्छा है। इसके बावजूद इन्हें विवाह के लिये बढ़िया घर से रिश्ता नहीं मिल रहा। -अमरेश यादव दुग्ध विभाग में काम करते हैं, बढ़िया नौकरी है। सामाजिक स्थिति ठीक ठाक है। घर परिवार अच्छा होने के बावजूद इनका अब तक विवाह नहीं हो सका हैं। इन युवाओं का मंगल और शनि ठीक हैं राहु और केतु का योग भी अच्छा है.... दर असल इन युवाओं की कुण्डली में है बिजली संकट दोष। इस दोष के कारण लोग इस गांव में अपनी बिटिया ब्याहना नहीं चाहते।’’ यह केवल इन दो व्यक्तियों की बात नहीं है। यहां के अनेक युवा अविवाहित हैं। यह व्यथा-कथा है, राजधानी लखनऊ के करीब के ग्रामों की। इन खबरों में मजा

इन्साफ के नाम पर किया गया धोखा

भोपाल गैस त्रासदी में मारे गए 25000 हज़ार लोगों और उनके इन्साफ के लिए तड़पती लाखों नज़रों को जिस तरह से  इन्साफ के तराजू में तोलकर ठगा गया वो हम सब के लिए हैरत के साथ साथ कानून पर शक करने की बजह छोड़ने वाली बात है. हत्या,बलात्कार आतंक की सजा जब फांसी हो सकती है तो 25000 लोगों के शरीर ही नहीं बल्कि उनकी आत्माओं के साथ किये गए बलात्कार की सजा 2 साल कैसे हो सकती है?, यह एक  ऐसा अपराध था जिसने उनकी आने वाली नस्लों को भी अपंगता की भट्टी में तपने के लिए छोड़ दिया है,इस तरह के इन्साफ से उन लोगों के जी को जरा सी भी ठंडक नहीं पहुच सकती,यह संबिधान एवं कानून से विश्वास उठाने के लिए काफी है . हिंदुस्तान का दर्द इस इन्साफ के नाम पर किये गए धोखे  का विरोध करता है और गैस त्रासदी में शहीद नागरिकों को नमन करता है.