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Showing posts from July 31, 2010

फेसबुक की कामयाबी की कहानी

Source: पीयूष पांडे  यह सचमुच अकल्पनीय है। साइट की उम्र सिर्फ छह साल और सदस्यों की संख्या पचास करोड़ से अधिक। छोटे से वक्त में वैश्विक परिघटना बन गया है फेसबुक। आखिर फेसबुक में ऐसा क्या है कि सदस्यों की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही है? क्या साइट एक अरब का आंकड़ा जल्द पार कर जाएगी? क्या एक नए ‘देश’ में तब्दील होते फेसबुक की सत्ता भी गूगल की तरह कई देशों की राजसत्ता के लिए खतरा पैदा करेगी? फेसबुक अब महज सोशल नेटवर्किग साइट नहीं रह गई है। करोड़ों लोगों की जिंदगी का अहम हिस्सा है। इसके जरिए लोग सिर्फ नेटवर्किग नहीं कर रहे। किसी के लिए जिंदगी की भागदौड़ के बीच यह अकेलेपन से छुटकारा पाने का जरिया है, तो किसी के लिए कारोबारी संपर्क तलाशने का। यह न्यूज, गेम्स, फोटो शेयरिंग, नेटवर्किग और न जाने कितने एप्लीकेशंस के इर्द-गिर्द बुनी एक ऐसी दुनिया है, जहां हर उम्र का शख्स अपना ठिकाना ढूंढ लेता है।   पिछले एक साल में भारत में फेसबुक के ग्राहकों की संख्या में 400 फीसदी की दर से इजाफा हुआ। इंडोनेशिया में रफ्तार की दर 793 फीसदी, ब्राजील में 810 फीसदी, थाईलैंड में 918 फीसदी और ताईवान में 2,8

वैदराज...

औषधिया की पचान इन्हें है॥ वैदराज कहलाते है॥ पर्वत और शिलाओं पर॥ चक्कर बहुत लगाते है॥ जड़ी बूटियों को ढूढ़ के॥ करते उसका उपयोग॥ सामाजिक कार्यो में जुटकर॥ साधा बड़ा है योग॥ हर बिमारी की दवा है रखते॥ रोगों को दूर भगाते है... औषधिया की पचान इन्हें है॥ वैदराज कहलाते है॥ इनके मस्तक पर छाया रहती॥ धन्वन्तरी घर को आते है... महाकाल के महामात्र का॥ करना उपयोग सिखाते है॥ कब इसका उपयोग है करना॥ योग विद्द्य सिखलाते है... औषधिया की पचान इन्हें है॥ वैदराज कहलाते है॥

मुझको भी घर जाना है...

अब छोडो ओढनिया देर भयी॥ हमको भी घर को जाना है... पूछेगी घर में मम्मी जब॥ बोलूगी क्या बहाना है॥ बहुत देर बहुत भयी बाते करते॥ मन चंचल हो कुछ पूछ रहा॥ तुम मेरे प्राण अधरे हो॥ ये दिल तुमको बतलाय रहा॥ तेरे ही घर की बतिया अब॥ सातो जनम सजाना है॥ चर्चा गलियों में फ़ैल चुकी ॥ किस किसने नहीं जाना है॥ मैंने भी उस अन्धकार में॥ तुमको ही पहचाना है॥ तुम ही मेरी सुख सम्पाती हो॥ ये दिल ही बड़ा खजाना है...