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Showing posts from March 27, 2009

संजय गाँधी का भूत और वरुण !

खुर्शीद अहमद- भड़ास फॉर यूपी क्या होता है जब कोई भूत और ज्यादा शक्तिशाली होकर आता है और इंसानों को मारता है जिसके (उस भूत के) अपने पिता सत्तर के दशक में प्रधान मंत्री तो नहीं था मगर परदे के पीछे उसी की ताक़त सबसे ज़्यादा थी? मैं बात कर रहा हूँ वरुण गाँधी की, जो कि अपने पिता से इतिहास से सिखने के बजाये, उसे दोहराने के बजाये इतिहास का ज़हर फैलाने का काम किया इतिहास तो खैर अलग की बात है लेकिन यह ज़रूर था कि वरुण गाँधी आज का राहुल गाँधी हो सकता था मगर अफ़सोस, ऐसा नहीं हुआ और इतिहास तो वैसे भी 'अगर' या 'मगर' आदि से नहीं बनता या व्याख्यांवित होता है इतिहास कभी किसी को हमेशा के लिए शक्तिशाली नहीं बना के रखता है संजय गाँधी, वरुण के पिता एक अत्यधिक शक्तिशाली राजनीतिग्य थे और इंदिरा गाँधी के 'सबसे प्रिय पुत्र' इंदिरा जी उनका बहुत फेवोर करती थीं वह ऐसे पुरुष थे जो जिनके लिए सफलता पहले से ही इंतज़ार कर रही होती थी 23, जून 1980 का वह मनहूस दिन जब वह सिंगल इंजिन वाले जहाज़ को उड़ते हुए मज़ा ले रहे थे और वो तीन चक्कर लगा चुके थे, सामान्यतः वह इतनी बार में संतुष्ट होकर वापस

कृपया कोई एक घटना का जिक्र करें कि जब आपको लगा ईश्वर मदद करता है

विनय बिहारी सिंह एक बार फिर मेरा आप सबसे विनम्र निवेदन है कि अगर संभव हो तो कृपया कोई एक घटना बताएं जब आपको लगा हो कि हां, ईश्वर तो हैं। यह सच है कि ईश्वर हमारी हर सांस में है। हमारा अस्तित्व ही ईश्वर के कारण है। लेकिन अगर एक घटना का जिक्र करें तो इससे एक दिव्य अनुभूति दूर तक फैलेगी। हम सब एक दूसरे के अनुभवों से रू-ब-रू होंगे। इसमें कोई हर्ज नहीं है। किसी संकोच की जरूरत नहीं है। मैं अपने जीवन की एक घटना यहां बता रहा हूं। यह सन १९८० की बात है। मैं दिल्ली में (अभी मैं कोलकाता में हूं) फ्री लांसिंग कर रहा था। मैं अनुवाद और लेखन का काम कर आजीविका चला रहा था। तब पत्रकारिता में मैंने नया नया कदम रखा था। उन दिनों मेरे लिए एक रुपए की भी कीमत थी। मैं बहुत कंजूसी से पैसा खर्च कर रहा था क्योंकि मेरे पास पैसे थे ही नहीं। एक बार ऐसा हुआ कि मेरे सारे पैसे खर्च हो गए। मेरी जेब खाली हो गई। सुबह चाय पीने के पैसे तक नहीं थे। रात को मैंने ईश्वर से घनघोर प्रार्थना की और चुपचाप सो गया। प्रार्थना तो मैं रोज ही करता था लेकिन उस रात प्रार्थना करते हुए मैं ईश्वर में डूब गया। तभी रात ११ बजे एक प्रेस से फोन आया।

कही लुप्त न हो जाए ये कोमल बचपन

बढती महगाई , गरीबी और बेरोज़गारी आदि आज के दौर अपने आप में एक बड़ा सवाल बन कर रह गयी है। एक ओर गरीब और गरीब होता जा रहा है और अमीरों का अकाउंट बैलेंस दिन ब दिन बढ़ता ही जा रहा है। सवाल यह नही की अमीर क्यों अमीर ज़्यादा बढ़ता जा रहा है, गरीब और गरीब क्यों है? बल्कि सवाल यह है की इस बढती महगाई और गरीबी में सबसे ज़्यादा मासूम और कोमल बच्चे पिस रहे है । गरीबी से तंग आकर इनके माँ बाप कम उम्र में ही इन्हे मजदूरी करने के मजबूर कर देते है। इन बच्चों की मजदूरी करने की नही बल्कि पढने और खेलने कूदने की है। यह बच्चे ही आने वाले दिनों वो समय में देश की शान और पहचान बनेगे और यह हमारी परम जिम्मे दारी है की हम उन्हें बेहतर वर्तमान मुहैय्या करवाई। पर आज स्थिथि इतनी ख़राब है की कोई बच्चा रिक्शा चला रहा है कोई चाय की दूकान पर " छोटू" बनकर जूठे कप उठा रहा है तो कोई किसी घर में डोमेस्टिक हेल्पर का काम करते हुए अपने मालिक की जूता की मार झेल रहा है। इन बच्चों की भी जीवन से कुछ अपेछायें होंगी , पर वे अपनी इच्छाओं को पुरा करने के लिए कुछ नही कर सकते? क्या हम इन बच्चों के मौलिक अधिकार नही दिला सकते

सोनिया की रैली क्यों रही फीकी?

कर्नाटक यासिर मुश्ताक स्पेशल कोरसपोंडेंट कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू से करीब 250 किमी दूर स्थित दावणगेरे में कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने सोमवार को अपनी पार्टी के चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत की । हालांकि रैली मे लोगों की काफी भीड़ थी लेकिन अगर किसी चीज की कमी थी तो वो थी सोनिया गांधी के जोश में। सोनिया गांधी ने भाषण की शुरुआत करते हुए बीजेपी पर निशाना साधा और राज्य की जनता से फिर सत्ता में आने पर विकास व प्रगति का वादा किया। गौर करने वाली बात यह कि सोनिया गांधी के भाषण मे वो जोश और जुनून नहीं दिखा, शायद उसकी वजह राज्य कांग्रेस में चल रहे टिकट बंटवारे को लेकर विवाद ही था। बताता चलूं कि राज्य कांग्रेस में काफी दिनों से यह विवाद चल रहा है हालांकी इस विवाद को सुलझाने के लिए गुलाम नबी आजाद भी आए थे लेकिन कुछ न हो सका, क्योंकि राज्य कांग्रेस में एक से बढ़कर एक नेता हैं। य़ही वजह है कि कांग्रेस ने अभी तक भी कर्नाटक में अपने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी नहीं की। दावणगेरे की रैली में सोनिया गांधी ने तो चुनाव प्रचार किया लेकिन वो लोगों को यह न कह सकीं कि किसे वोट डालो, क्योंकि उसके पास अभी फ

इंडियाटाईम्स मेल : आये दिन सर्वर डाउन

जैसा कि आप इस चित्र को देख कर अंदाजा लगा सकते है कि इंडियाटाईम्स का सर्वर तीस मार्च को वापस काम कर पायेगा | मैंने यह स्नैप कल यानि 26-मार्च-2009 को लिया था और आज पोस्ट कर रहा हूँ| यह सर्वर इससे पहले भी कई बार डाउन हो चूका है | चुंकि मैं जिस कंपनी में जॉब करता हूँ वहां का मुख्य ईमेल खाता इंडियाटाईम्स पर ही है | अब तीस मार्च तक इंतज़ार करना पड़ेगा|

पापा मैं स्कूल नहीं जाउंगी........!!

अभी - अभी अपनी छोटी बिटिया मौली को स्कूल छोड़कर आ रहा हूँ , जिसे दस दिनों पहले ही स्कूल में दाखिल किया है .... उसकी उम्र ढाई साल है .... और रोज - ब - रोज स्कूल के दरवाजे पर पहुँचते ही इतना रोटी है कि उसे वापस घर ले आने को मन करता है .... और तक़रीबन सारे ही बच्चे स्कूल के गेट के एब सम्मुख आते ही जोरों से चिंघाड़ मारना शुरू करते हैं .... और सारा माहौल ही रुदनमय हो जाता है ... कितनी ही माताओं की आँखे नम हो जाती हैं .... और कुछ को तो मैंने बच्चों को छोड़कर गेट पर ही रोते हुए भी देखता हूँ .... ख़ुद मेरी भी आँखे कुछ कम नहीं नम होती ... मगर बच्ची को स्कूल जाना है तो जाना है ... अब चाहे रोये ... चीखे या चिल्लाए .... अपना दिल काबू कर उसे रोता हुआ छोड़कर अपने को रोज वापस आ जाना होता है ......!! सवाल बच्चे द्वारा नई जिन्दगी की शुरुआत का नहीं है .... मेरे लिए सवाल बच्चे की उम्र का है ... जो दो से ढाई साल का है ...