प्रिय मित्रों , पिछले कुछ दिनों से मेरे एक ऐसे मित्र से ( उनके ब्लॉग के माध्यम से ) कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर बातचीत चल रही है जिनसे व्यक्तिगत परिचय का सौभाग्य मुझे अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है। मैं इन मुद्दों पर क्या सोचता हूं , यह तो आपने पढ़ ही चुके हैं पर मेरी एक पोस्ट - " मैं भला क्यों नाराज़ होने लगा " को पढ़ कर , श्री संजय ग्रोवर ( मेरे उन मित्र का नाम श्री संजय ग्रोवर है ) ने अपनी पिछली पोस्ट में ही कतिपय परिवर्तन करके उसे पुनः अपने ब्लॉग पर दिया है । अपने सुधी पाठकों तक उसे पंहुचाने के लिये मैं ग्रोवर जी की पोस्ट को ज्यों का त्यों यहां उद्धृत कर रहा हूं जो मुझे अपनी पोस्ट के उत्तर में मिली है। इस पोस्ट के साथ ही मेरा उत्तर भी अंकित है । आप इस बारे में क्या सोचते हैं , जानने की उत्सुकता है। जो सवाल ग्रोवर जी उथा रहे हैं , वह निश्चय ही महत्वपूर्ण हैं ऐसे में आप सबकी भी जिम्मेदारी बनती है कि आप इस बहस में सक्रिय भागीदारी करें । आपका ही , सुशान्त सिंहल ये रहा संजय ग्रोवर जी द्वारा मुझे दिया गया उत्तर ( मेरी पोस