Skip to main content

Posts

Showing posts from February 12, 2009

मित्रों, इस बहस में आपकी भी भागीदारी चाहिये !

प्रिय मित्रों ,       पिछले कुछ दिनों से मेरे एक ऐसे मित्र से ( उनके ब्लॉग के माध्यम से ) कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर बातचीत चल रही है जिनसे व्यक्तिगत परिचय का सौभाग्य मुझे अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है।       मैं इन मुद्दों पर क्या सोचता हूं , यह तो आपने पढ़ ही चुके हैं पर मेरी एक पोस्ट - " मैं भला क्यों नाराज़ होने लगा " को पढ़ कर , श्री संजय ग्रोवर ( मेरे उन मित्र का नाम श्री संजय ग्रोवर है ) ने अपनी पिछली पोस्ट में ही कतिपय परिवर्तन करके उसे पुनः अपने ब्लॉग पर दिया है ।  अपने सुधी पाठकों तक उसे पंहुचाने के लिये मैं ग्रोवर जी की पोस्ट को ज्यों का त्यों यहां उद्धृत कर रहा हूं जो मुझे अपनी पोस्ट के उत्तर में मिली है।  इस पोस्ट के साथ ही मेरा उत्तर भी अंकित है ।        आप इस बारे में क्या सोचते हैं , जानने की उत्सुकता है। जो सवाल ग्रोवर जी उथा रहे हैं , वह निश्चय ही महत्वपूर्ण हैं ऐसे में आप सबकी भी जिम्मेदारी बनती है कि आप इस बहस में सक्रिय भागीदारी करें ।   आपका ही ,   सुशान्त सिंहल   ये रहा संजय ग्रोवर जी द्वारा मुझे दिया गया उत्तर ( मेरी पोस

छत्तीसगढ - लोकसभा चुनाव २००९

वैस तो हर ५ साल में लोकसभा चुनाव होते है पर २००९ के लोकसभा चुनाव कई मामलो में पूर्व में सम्पन्न चुनावों से अलग होगे देश में चल रही अंदुरनी कलह , मंदी का दौर, ऊपर से आतंकवाद जसे बड़े मुद्दे तो होगे ही एसे में देश की बागडोर किस राजनैतिक दल को मिलता है या फ़िर वही मिली जुली सरकार के पास जाती है देखने वाली बात होगी लेकिन छत्तीसगढ में भी इस लोक सभा चुनाव में अप्रत्याशित रिजल्ट की बात कहे तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी क्यो कि वर्ष २००९ के लोकसभा चुनाव में 18 साल पूरा करने वाली नई पीढ़ी प्रदेश के कर्णधारों का चयन करने को बेताब है। खनिज के मामले में सबसे धनाढ्य माने जाने वाले छत्तीसगढ़ में 40 प्रतिशत नई पौध अपने वोट से सरकार चुनने के लिए तैयार है।राज्य के कुल मतदाताओं में से 3 लाख यानी लगभग 2 फीसदी लोग पहली बार सरकार चुनने बूथ तक जाएंगे। 30 सितंबर तक नई वोटर लिस्ट बनने के बाद इस संख्या में इजाफा हो सकता है। यही वजह है की कांग्रेस से लेकर भाजपा और अन्य दल में युवाओं की इच्छानुसार युवा प्रत्याशी की खोज जोर शोर से की जा रही है जिसेसे वह युवा जो पहली दफा वोट देंगे उनमे ज्यादा से ज्यादा पकड बना कर लोकस
हवाओ के बीच प्रेम पर्व की आहटे आना शुरू हो गई है। शहरों में तो इसका सीधा सा मतलब यही होता है कि पार्टनर बदलने का वक्त आ गया है। अब आपकी बेक सीट पर मधु बैठी पुरानी लगने लगी है, उसे बदल कर प्राची को गर्लफ्रेंड बनाने के जतन किए जा रहे है। कमोबेश कुछ ऐसा मधु भी सोच रही होती है कि प्रवीणअब पुराना हो चला, क्यो न जिग्नेश को लिफ्ट दी जाए। मेरे शहर में अब प्रेम नही उसका अभिनय किया जाता है। वो जो संत प्यार के नाम कुर्बान हो गया, अगर अब आकर देखे तो दुःख में ही उसके प्राण छुट जायेंगे। वेलेंतैने डे पर हाथो में लाल गुलाब और भावनाए पीछे की जेब में दबी होती है। शायरों के अशार उधार लेकर दिल की बाजी जीतने की होड़ होती है। कुछ कथित मर्दानों के लिए प्यार देह के भूगोल नापने से आगे बढ़ ही नही पाता, ऐसे ही अर्थहीन आसक्त किनारों से टकरा कर प्यार के समंदर की लहरे अपना माथा कूटती रह जाती है। प्रेम तो एक झीनी सी चादर की तरह होता है। आज के युवा इस चादर पर देह पिपासा की कीले ठोक देते है। उसके बाद प्रेम उन्मुक्त पंछी की तरह आकाश में नही उड़ता बल्कि देह की धरती पर कीलो से दबा रह जाता है। अपने अर्थ को खो देता है

हिन्दुस्तानियों का खून अब पानी हो गया है?

हिन्दुस्तानियों का खून अब पानी हो गया है? हिन्दुस्तान का दर्द वो बेदर्द नहीं समझेगे , जिन्हें आदत है खून बहाने की ,जिनका मजहब ही नफरत है !!!अपनी कुसंगत भावनाओ को किसी के ऊपर थोपना ही आतंकवाद है लेकिन समय के साथ साथ इअका रूप भी बदल चुका है आज हिंसा की दम पर खून की नदिया बहाना की आतंकवाद का मोर्डेन रूप है भारत आतंकवाद से पीडित है ,जिस तरह से मुंबई मे खून का नंगा नाच खेला गया , बेगुनाहों को भूना गया उससे सारी जनता के दिल मे आतंकवाद के खिलाफ पल रही नफ़रत अब एक बेहद बड़ा रूप ले चुकी है !आज हर आदमी आतंकवाद से निपटने के लिए सरकार से किसी कड़े और बड़े कदम की आशा कर रहा है शायद जनता का यह बड़ा कदम ''युद्ध'' है ! जी हां आज जनता चाहती है की अब हिन्दुस्तान और पकिस्तान की आखिरी लडाई हो , जिसमे कोई एक बचे और वो सुकून से रह सके !!लेकिन युद्ध एक अभिशाप है और जब तक न हो तो ही अच्छा है क्यों की इसके बाद देश की विकास गति मंद पड़ जाती है और देश को अनेकों मुसीबतों का सामना करना पड़ता है !! और वैसे भी हम किस्से लड़ने की बात कर रहे है पकिस्तान से जबकि मेरे ख्याल से तो हमारी l लडाई पकिस्तान से न

अब मूर्ति को छुने से महिला गर्भवती,जरा मर्द गौर फरमाएं

उन लोगों के लिए खुश खबरी है जो बच्चे पैदा करने मे सक्षम नहीं है और बच्चे चाहते है अगर ऐसा है तो आज जाइए अब आपकी तमन्ना पूरी होने वाली है ! लगता है जिन महिलाओं को बच्चा नहीं होता उनकी परेशानी हमेशा के लिए खत्म हो जाने वाली है. वह भी डाक्टरों की मदद के बिना ही.साउथ कैरोलिना के मिर्टल बीच स्थित सं ग्रहालय में प्रदर्शन के लिए लगाई गई लकड़ी की मूर्तियों के बारे में कहा जा रहा है कि इन्हें छूने भर से महिलाओं के गर्भवती हो जा रही हैं.यह प्रदर्शनी एक महीने तक चलेगी. पांच फीट लंबी इन मूर्तियों को 1993 में आइवरी कोस्ट से लाया गया था. अधिकारियों का कहना है कि 'कभी ये मूर्तियां ओरलैंडो के कारर्पोरेट मुख्यालय में रखी थीं. तभी इन्हें छूने के बाद 13 महिलाओं ने गर्भवती होने की बात बताई थी. अभी तक इनका विश्व में कई जगह प्रदर्शन किया जा चुका है और इन मूर्तियों को छूकर दो हजार महिलाएं गर्भधारण कर चुकी हैं. मूर्तियों को यहां प्रदर्शनी के लिए एक मार्च तक रखा जाएगा.अब कंपनी ने मूर्तियों की इस खूबी का प्रचार करना भी शुरू कर दिया है. विवाहित महिलाओं से कहा जा रहा है कि बच्चा चाहिए तो वे मूर्ति छू सकती ह

अंहकार का गणित जीवन को नष्ट कर देता है....!!

अंहकार और मुर्खता एक दूसरे के पर्याय होते हैं.....मूर्खों को तो अपने अंहकार का पता ही नहीं होता....इसलिए उनका अहंकारी होना लाजिमी हो सकता है मगर...अगर एक बुद्धिमान व्यक्ति भी अहंकारी है तो उससे बड़ा मुर्ख और कोई नहीं....!! जिस भी किस्म लडाई हम अपने चारों तरफ़ देखते हैं....उसमें हर जगह अपने किसी न किसी प्रकार के मत...वाद....या प्रचार के परचम को ऊँचा रखने का अंहकार होता है.....इस धरती पर प्रत्येक व्यक्ति...समूह....धर्मावलम्बी....राष्ट्र...यहाँ तक कि किसी भी भांति का कोई भी आध्यात्मिक संगठन तक भी एक किस्म के अंहकार से अछूता नहीं पाया जाता......यही कारण है कि धरती पर शान्ति स्थापित करने के तमाम प्रयास भी इन्हीं अहंकारों की बलिवेदी पर कुर्बान हो जाते हैं.....प्रत्येक मनुष्य को ख़ुद को श्रेष्ठ समझने की एक ऐसी भावना इस जग में व्याप्त है कि ये किसी अन्य को ख़ुद से ऊँचा समझने ही नहीं देती...........और यही मनुष्य यदि किसी भी प्रकार के समूह से सनद्द हो जाए तो उसके अंहकार की बात ही क्या....फ़िर तो उसे और भी बड़े पर लग जाते हैं....तभी तो हम यहाँ तक देखते है