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Showing posts from December 7, 2009

लो क सं घ र्ष !: धन्य हैं हमारी खुफिया एजेंसियां

हमारी खुफिया एजेंसियां 26 जनवरी , 15 अगस्त , 6 दिसम्बर जैसे मौकों पर व आतंकी मामलों में मीडिया के माध्यम से मालूम होता है की वो काफ़ी सक्रिय हैं और देश चलाने का सारा भार उन्ही के ऊपर है । खुफिया एजेंसियों की बातें और उनकी खुफिया सूचनाएं बराबर अखबार में पढने व इलेक्ट्रोनिक माध्यम से सुनने को मिलती हैं । छुट भैया नेता रोज प्रेस विज्ञप्ति जारी करता है और छपने पर अखबार खरीद कर जगह - जगह किसी न किसी बहाने लोगो को पढवाता रहता है और उसी तरह खुफिया एजेंसियां मीडिया में अपने समाचार प्रकाशित करवाती रहती हैं। खुफिया सूचनाओं का अखबारों में प्रकाशित होना क्या इस बात का धोतक नही है कि जान बूझ कर वह प्रकाशित करवाई जाती हैं और उन सूचनाओ में कोई गोपनीयता नही है । अक्सर विशिष्ट अवसरों से पहले तमाम तरह की कार्यवाहियां मीडिया के माध्यम से मालूम होती हैं जो समाज में सनसनी व भय फैलाने का कार्य करती हैं अंत में वो सारी की सारी सूचनाएं ग़लत साबित होती हैं । नागरिक उस

प्रभु (दशरथ) चावला की राम कहानी

आलोक तोमर कहानी अब नए-नए मोड़ लेती जा रही है। तत्कालीन पाकिस्तान के डेरा गाजीखान से दो साल का एक बच्चा विभाजन के दौरान शरणार्थी के तौर पर माता पिता के साथ भारत आया था। जमुना पार में झिलमिल कॉलोनी में परिवार को एक छोटा सा घर मिला। यह बालक अब प्रधानमंत्रियों और कैबिनेट सचिवों के साथ उठता बैठता है और दिल्ली के पुलिस कमिश्नर उसके फोन पर लगभग खड़े हो कर बात करते है। जानने वाले बताते हैं कि बच्चा बड़ा हुआ और देशबंधु कॉलेज, कालका जी से पढ़ाई करने के बाद पहले एक कॉलेज में पढ़ाया और फिर पत्रकार बन गया। ऐसे भी बहुत सारे लोग हैं जिन्होंने इस बच्चे यानी प्रभु चावला को झिलमिल कॉलोनी की रामलीला में दशरथ की भूमिका करते देखा था। लेकिन प्रभु चावला सिर्फ मंच तक ही दशरथ रह गए। बेटे अंकुर को राम नहीं बना पाए। सीबीआई की फाइलों में अंकुर चावला का नाम अमर उजाला दलाली प्रकरण के एक दलाल के तौर पर दर्ज है। अब आपको बताते हैं अमर उजाला की कहानी। 1948 मे ही जब प्रभु चावला माता पिता की गोद में सीमा पार कर के दिल्ली पहुंचे थे, आगरा में स्वर्गीय डोरी लाल अग्रवाल और स्वर्गीय एम एल माहेश्वरी ने मिल कर अमर उजाला