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Showing posts from February 13, 2010

डरावनी जासूसी कहानी

खुशवंत सिंह जालंधर  का अटवाल परिवार शहर का सबसे संपन्न और सम्मानित परिवार है। उनका घर सात बेडरूम की विशाल हवेली है, जिसमें स्वागत कक्ष, भोजन कक्ष, गुरुद्वारे के लिए एक अलग कमरा, बिहारी सेवकों के लिए सर्वेट क्वार्टर्स और एक विशाल बगीचा है। वे कीर्तन और अखंड पाठ करवाते रहते हैं। उदारता और खुले मन से परमार्थ के कामों में भी लगे रहते हैं : एक क्लिनिक, एक स्कूल और संस्थाओं को दान। परिवार के प्रमुख को संत जी कहा जाता है, क्योंकि वह संत स्वभाव के इंसान हैं। उनकी पत्नी को सभी मां सुक्खी कहते हैं, क्योंकि सभी उनकी ओर दैवीय मां की तरह देखते हैं। उनके बेटे हैं और दो बेटियां। बेटियों दुर्गा और शारदा का वे बहुत लाड़-प्यार से पालन नहीं करते, महज इसलिए कि जमींदार जाट परिवारों में बेटियों को ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती। अचानक शारदा रहस्यमय ढंग से गायब हो जाती है। कोई नहीं जानता कि वह कैसे और कहां गई। फिर बारिश के मौसम में एक रात बेटी दुर्गा को छोड़कर परिवार के बाकी सभी सदस्यों को खाने में चूहों को मारने वाला जहर दे दिया जाता है और चाकुओं से गोदकर मार दिया जाता है। घर को आग लगाने की कोशिश भी की

.तुम से हम मिले ........

राह मे अकेले जो तुम चले... फिर तुम से ..हम मिले साथ मिल कर ...थाम के हाथ मेरा .. नयी राहो पे हम साथ चले .... नजरो के रास्ते ..तुम हो दिल मे बसे वफ़ा की मूरत ...जफा की सूरत.. लिए अनजान रहो पे साथ बढे ........ दुनिया की इस भीड़ मे.. मै भी अकली सी थी खुद को तलाशती सी थी .... पर नहीं मिला कोई भी.. पर जब से हम से ,तुम मिले हो हर राह साथ चले हो ..दे कर अपना साथ , लेकर मुझे साथ , कोई धोखा नहीं,कोई नहीं किया फरेब दिया अपना सच्चा साथ , हर राह को किया तुमने आसान , इस जिंदगी को बना दिया जीने के काबिल , तुम से मुझे हर ख़ुशी मिली ,मिला जीने को पूरा ये आसमा ... जहा मे भी उडी ..अपने अरमानो के पंख लगा , इतिह्सा का तो पता नहीं ....... हक्कीकत की ज़मी पे हो मेरे साथ.... तुम से ..हम मिले........तुम से हम मिले ........ (....कृति.....अनु.....)

लो क सं घ र्ष !: विधि व्यवस्था में अधिवक्ता की भूमिका खत्म कर दो

भारतीय विधि व्यवस्था में प्रत्येक व्यक्ति को न्याय पाने का अधिकार है और अपने मन पसंद अधिवक्ता से अपने वाद में अपना पक्ष प्रस्तुत करने का भी अधिकार । आए दिन अधिवक्ताओं के ऊपर हमले नियोजित तरीके से हो रहे हैं और उनसे कहा जा रहा है अमुक मुकदमा करो और अमुक मुकदमा न करो । देश भर में आतंकवाद से सम्बंधित मुकदमों का विचारण हो रहा है भारतीय विधि व्यवस्था में उन वादों का विचारण तभी संभव है जब उनकी तरफ से कोई अधिवक्ता उनका पक्ष प्रस्तुत करे अन्यथा अधिवक्ता न मिलने की दशा में वाद का विचारण संभव नहीं है तब एक ही रास्ता होता है कि न्यायलय उस अभियुक्त की इच्छा अनुरूप अधिवक्ता नियुक्त करे और उसका भी खर्चा न्याय विभाग उठता है । विधि के सिधांत के अनुसार फौजदारी वादों में अधिवक्ता की भूमिका न्यायलय की मदद करने के लिए अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत गवाहों से जिरह (cross examination ) करना होता है जिरह में न्यायलय के सामने गवाह से तमाम सारे वाद से सम्ब