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Showing posts from February 11, 2012

हास्य मुक्तिका: ...छोड़ दें?? -- संजीव 'सलिल'

हास्य मुक्तिका: ...छोड़ दें?? संजीव 'सलिल' * वायदों का झुनझुना हम क्यों बजाना छोड़ दें? दिखा सपने आम जन को क्यों लुभाना छोड़ दें?? गलतियों पर गलतियाँ कर-कर छिपाना छोड़ दें? दूसरों के गीत अपने कह छपाना छोड़ दें?? उठीं खुद पर तीन उँगली उठें परवा है नहीं एक उँगली आप पर क्यों हम उठाना छोड़ दें?? नहीं भ्रष्टाचार है, यह महज शिष्टाचार है. कह रहे अन्ना कहें, क्यों घूस खाना छोड़ दें?? पूजते हैं मंदिरों में, मिले राहों पर अगर. तो कहो क्यों छेड़ना-सीटी बजाना छोड़ दें?? गर पसीना बहाना है तो बहायें आम जन. ख़ास हैं हम, कहें क्यों करना बहाना छोड़ दें??   राम मुँह में, छुरी रखना बगल में विरसा 'सलिल' सिया को बेबात जंगल में पठाना छोड़ दें?? बुढाया है तन तो क्या? दिल है जवां  अपना 'सलिल' पड़ोसन को देख कैसे मुस्कुराना छोड़ दें? हैं 'सलिल' नादान क्यों दाना कहाना छोड़ दें?  रुक्मिणी पा गोपियों को क्यों भुलाना छोड़ दें?? Acharya Sanjiv verma 'Salil' http://divyanarmada.blogspot. com http://hindihindi.in