नव गीत: संजीव 'सलिल' सागर उथला, पर्वत गहरा... * डाकू तो ईमानदार पर पाया चोर सिपाही. सौ पाए तो हैं अयोग्य, दस पायें वाहा-वाही. नाली का पानी बहता है, नदिया का जल ठहरा. सागर उथला, पर्वत गहरा... * अध्यापक को सबक सिखाता कॉलर पकड़े छात्र. सत्य-असत्य न जानें-मानें, लक्ष्य स्वार्थ है मात्र. बहस कर रहा है वकील न्यायालय गूंगा-बहरा. सागर उथला, पर्वत गहरा... * मना-मनाकर भारत हारा, लेकिन पाक न माने. लातों का जो भूत बात की भाषा कैसे जाने? दुर्विचार ने सद्विचार का जाना नहीं ककहरा. सागर उथला, पर्वत गहरा... *