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Showing posts from December 4, 2009

नव गीत: सागर उथला / पर्वत गहरा... संजीव 'सलिल'

नव गीत: संजीव 'सलिल' सागर उथला, पर्वत गहरा... * डाकू तो ईमानदार पर पाया चोर सिपाही. सौ पाए तो हैं अयोग्य, दस पायें वाहा-वाही. नाली का पानी बहता है, नदिया का जल ठहरा. सागर उथला, पर्वत गहरा... * अध्यापक को सबक सिखाता कॉलर पकड़े छात्र. सत्य-असत्य न जानें-मानें, लक्ष्य स्वार्थ है मात्र. बहस कर रहा है वकील न्यायालय गूंगा-बहरा. सागर उथला, पर्वत गहरा... * मना-मनाकर भारत हारा, लेकिन पाक न माने. लातों का जो भूत बात की भाषा कैसे जाने? दुर्विचार ने सद्विचार का जाना नहीं ककहरा. सागर उथला, पर्वत गहरा... *

वाजपेयी का मुखौटा या संघ का खिलौना

आशुतोष मैनेजिंग एडिटर ibn7 लिब्रहान कमीशन ने अयोध्या का सच सामने लाने में 17 साल लगाए और इसको लेकर उसकी जी भर के आलोचना की जानी चाहिए। पूरी रिपोर्ट पढ़ने के बाद ये भी लगता है कि कमीशन ने कांग्रेस लीडरशिप को भी जाने अनजाने बचाने की कोशिश की है। वो नरसिंहराव को जिम्मेदारी के बोझ से मुक्त कर देती है लेकिन पूरी रिपोर्ट ने सबसे ज्यादा चौंकाया अटल बिहारी वाजपेयी को अयोध्या मामले में घसीट कर। इस वजह से हिंदूवादियों और कुछ भ्रमित सेकुलरवादियों को मिर्ची लगी हैं। वो इसी आधार पर जस्टिस लिब्रहान की मंशा और विवेक पर प्रश्नचिह्न लगा रहे हैं। कमीशन बड़े दिलचस्प अंदाज में वाजपेयी को 'स्यूडो-माडरेट' बताती है। यानी वो शख्स जो दिखने में तो उदारवादी है पर हकीकत में उदारवाद का ढोंग कर रहा है, वो 'छद्म -उदारवादी' है। पेज 942, पैरा 166.6 में रिपोर्ट लिखती है 'आडवाणी, वाजपेयी, जोशी को संघ परिवार की साजिश पता न हो ये नही माना जा सकता है। '...पैरा 166.7 'ये नेता संघ परिवार का आदेश न मानने की हिम्मत नहीं सकते थे, विशेषकर आरएसएस का आदेश। ऐसा करने की कीमत थी बीजेपी और सार्वजनिक जीवन से

लो क सं घ र्ष !: लोकतंत्र जिसका गुन अमेरिका गाता है

अमेरिका ने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई को चेताविनी दी है कि भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ व अच्छे काम- काज के नतीजे जाहिर करो अन्यथा उनकी जगह कोई और लेगा । अमेरिका जिसके पास पूरी दुनिया में लोकतंत्र कायम करने का ठेका है वह अब लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई सरकारों के नेताओं को यह बताएगा कि तुम्हारा काम काज ठीक नही है । तुम्हारी जगह पर हम दूसरे व्यक्ति को नेता नियुक्त करेंगे । जनता द्वारा किसी भी चुनी गई सरकार को हटाने का हक़ जनता को ही होता है लेकिन साम्राज्यवादियों के अगुआ अमेरिका ने पूरी दुनिया के अधिकांश राष्ट्राध्यक्षों को अपना नौकर समझ रखा है और धीरे - धीरे वह जनता को भी गुलाम समझने लगा है । अमेरिकां साम्राज्यवादी दुनिया में लोगों को लोकतंत्र का सपना दिखाते हैं और उसके बहाने वह उस देश को गुलाम बनने कि रणनीति बनाते हैं । अफगानिस्तान में हामिद करजई कि सरकार उनकी पिट्ठू सरकार है ही और अब जब अफगान समस्या का समाधान नही कर पा रहे