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Showing posts from December 24, 2008

सांसारिक प्रेम और देशप्रेम

श हर लंदन के एक पुराने टूटे-फूटे होटल में जहां शाम ही से अंधेरा हो जाता है, जिस हिस्से में फैशनेबुल लोग आना ही गुनाह समझते हैं और जहां जुआ, शराबखोरी और बदचलनी के बड़े भयानक दृश्य हरदम आंख के सामने रहते हैं उस होटल में, उस बदचलनी के अखाड़े में इटली का नामवर देश-प्रेमी मैजिनी खामोश बैठा हुआ है। उसका सुंदर चेहरा पीला है, आंखों से चिन्ता बरस रही है, होंठ सूखे हुए हैं और शायद महीनों से हजामत नहीं बनी। कपड़े मैले-कुचैले हैं। कोई व्यक्ति जो मैजिनी को पहले से न जानता हो, उसे देखकर यह खयाल करने से नहीं रुक सकता कि हो न हो यह भी उन्हीं अभागे लोगों में है जो अपनी वासनाओं के गुलाम होकर जलील से जलील काम करते हैं। मैजिनी अपने विचारों में डूबा हुआ हैं। आह बदनसीब कौम ! ऐ मजलूम इटली! क्या तेरी किस्मत कभी न सुधरेगी, क्या तेरे सैंकड़ों सपूतों का खून जरा भी रंग न लायेगा ! क्या तेरे देश से निकाले हुए हजारों जाँनिसारों की आहों में जरा भी तारीर नहीं। क्या तू अन्याय और अत्याचार और गुलामी के फंदे में हमेशा गिरफ्तार रहेगी। शायद तुझमें अभी सुधरने की, स्वतंत्र होने की योग्यता नहीं आयी। शायद तेरी किस्मत में कुछ दि