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Showing posts from July 19, 2010

प्रेम की प्रेमदीवानी हूँ..

मै प्रेम नगर की rअहने वाली॥ प्रेम की प्रेम दीवानी हूँ,। वह तो मेरा प्रेम दीवाना॥ मै उसकी घरवाली हूँ॥ सात साल पर बात हुयी थी॥ तेरह साल में हुयी मुलाक़ात॥ सोलह साल की भइल उमारिया॥ सूझे लाग उल्का पात॥ मै यौवन से भरी पूरी हूँ॥ मै उनकी मस्तानी हूँ॥ वह तो मेरा प्रेम दीवाना॥ मै उसकी घरवाली हूँ॥ नैन मेरे नाजुक लगत है॥ होठ नहीं किये रसपान॥ केश घनेरी हर हर डोले॥ करके आयी हूँ स्नान॥ रोक न पाऊ गी अपने को॥ मै उसकी प्रेम की डाली हूँ॥ चमके देहिया रूप सलोना॥ गमके अंगना कोना कोना॥ हंस देती तो मोती गिरते॥ दर लगता है लगे न टोना॥ बर्दाश्त की सीमा तोड़ चुकी हूँ॥ मै सपनों की क्यारी हूँ॥ वह तो मेरा प्रेम दीवाना॥ मै उसकी घरवाली हूँ॥

मै और जा जी,,

मै और झा जी ,,, मै: झा जी॥ झा जी: हां जी॥ मै: किस खेत की मुर्गिया अंडा नहीं देती है॥ झा जी: जिस खेत में मुर्गिया नहीं होती है॥ मै: झा जी॥ झा जी: हां जी॥ मै: ममता दीदी के आते ही रेल गाडी लोगो को क्यों रोज़ ठेल रही है॥ झा जी: क्यों की ममता लालू जैसे नहीं है॥ मै : झा जी॥ झा जी: हां जी॥ मै: हमारे देख में दिनों दिन महगाई क्यों दौड़ी चली आ रही है॥ झा जी: क्यों की भारत में भ्रष्टा चार व्याप्त है॥

क्यों दूर जाती हो...

साकी शराब हाथ ले॥ होठो पे गिरातीहो॥ होता हूँ नशा में जब॥ क्यों दूर जाती हो॥ आँखों के इशारों से पास बुलाती हो॥ कुछ बात नहीं कहती क्यों शर्माती हो॥ फिर दिल को तोड़ देती करीब नहीं आती हो॥ होता हूँ नशा में जब॥ क्यों दूर जाती हो॥ बाते बनाती खूब हो रूप है शलोना॥ मेरा दिल बोलता है तुम कुछ कहो न॥ जगा के यूं उमंगें क्यों भूल जाती हो॥ होता हूँ नशा में जब॥ क्यों दूर जाती हो॥ जब टूटता है दिल तो धुधाता सहारा॥ कोई नहीं दिखाता सामीप न किनारा॥ गम के दिनों में क्यों नज़र आती हो॥ होता हूँ नशा में जब॥ क्यों दूर जाती हो॥ मुझसे तो तो पूछिये हम कैसे जी रहे है॥ साथी समझ शराब को हम पी रहे है॥ तोड़ के वे बंधन क्यों पछता रही हो॥ होता हूँ नशा में जब॥ क्यों दूर जाती हो॥