क्या मिलन विरह में अन्तर , सम्भव जान पड़ते हैं । निद्रा संगिनी होती तो , सपने जगते रहते हैं ॥ जीवन का सस्वर होना , विधि का वरदान नही है । आरोह पतन की सीमा , इतना जग नाम नही है ॥ मिट्टी से मिट्टी का तन , मिट्टी में मिट्टी का तन । हिमबिंदु निशा अवगुण्ठन , ज्योतित क्षण भर का जीवन ॥ डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ' राही '