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Showing posts from September 13, 2009

लो क सं घ र्ष !: क्या मिलन विरह में अन्तर

क्या मिलन विरह में अन्तर , सम्भव जान पड़ते हैं । निद्रा संगिनी होती तो , सपने जगते रहते हैं ॥ जीवन का सस्वर होना , विधि का वरदान नही है । आरोह पतन की सीमा , इतना जग नाम नही है ॥ मिट्टी से मिट्टी का तन , मिट्टी में मिट्टी का तन । हिमबिंदु निशा अवगुण्ठन , ज्योतित क्षण भर का जीवन ॥ डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ' राही '

भड़ास blog: ग़लतफ़हमी में#links

आरती "आस्था" हम मिलते हैं.... बात करते हैं..... लेकिन नहीं होता जब कभी हमारे पास बोलने के लिए कुछ (हालांकि कमी नहीं है हमारे पास शब्द भावनाओं की) और पसरने लगती है खामोशी हमारे दरम्यान तो भागने लगते हैं हम एक-दूसरे से भागना जो नहीं चाहते एहसास में भी और खामोशी एहसास कराती है एक दूरी का हमारे बीच...... वास्तव में बैठ गया है एक डर हममें कुंडली मारकर जो न बोलने देता है और न ही रहने देता है चुप.... कि कहीं खो न दें हम किसी गलतफहमी में एक-दूसरे को।